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क्षुद्ररोगाधिकारः।
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( उदर से मुखकी तरफ) बार २ आता है इसे हिक्का (हिचकी) रोग कहते हैं। यह रोग प्राणियों के दिव्य प्राणको नाश करता है। इसलिये इसका नाम हिक्का है ऐसा जिनेंद्र देवने कहा है ॥ ७६ ॥
हिक्काके पांच भेद. कफेन सहितोतिकोपवशतो महाप्राणइ - । त्युदीरितमरुत्करीत्याखिलपंचहिकामयं ॥ अथान्नजनितां तथात्र यमिको पुनः क्षुद्रिकां।
महाप्रलयनामिकामधिकभूरिगंभीरिकां ।। ७७ ॥ अर्थ-कफसे युक्त प्राण नामक महा-वायु कुपित होकर पांच प्रकार के हिका रोगको उत्पन्न करता है । उनका नाम क्रमसे अन्नजा, यमिका, क्षुद्रिका, महाप्रल या व गंभीरिका है ॥ ७७ ॥
अन्नजयमिका हिकालक्षण. सुतीवकटुभोजनैर्मरुदधः स्वयं पातितः। तदोर्ध्वमत उत्पतन् हृदयपार्श्वपीडावहः ॥ करोत्यधिकृतान्नज विदितनामहिक्कां पुन- ।
श्चिरेण यमिकां च वेगयुगलैः शिरः कंपयन् ॥ ७८ ॥ . भावार्थ:-तीक्ष्ण व कटुपदार्थों के अत्यधिक भोजनमे नीचे दबा हुवा वात एकदम ऊपर आकर हृदय व फसली में पीडा उत्पन्न करते हुए जो हिकाको उत्पन्न करता है उसे अन्न जा हिक्का कहते हैं, और जो कंठ व सिरको कंपाते हुए ठहर ठहरकर एक २ दफे दो दो हिचकियोंको उत्पन्न करता है उसे यमिका हिक्का कहते
शुद्रिकाहिका लक्षण. चिरेण बहु कालतो विदितमंदवेगैः ऋम-- ।। क्रमेण परिवर्द्धने प्रकटमत्रमूलादतः ॥ नृणामनुगतात्मनामसहितात्र हिक्का स्वयं ।
भवेदियमिह प्रतीतनिजलक्षणः क्षुद्रिका ॥ ७९ ॥ भावार्थ:----जो बहुत देरसे, मंश्योग के साथ क्रमाग से, जत्रुकास्थि ( हसली असून हिनतीति हिका।
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