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क्षुद्ररोगाधिकारः।
उदावर्त नामक रोग उत्पन्न होता है । यह सर्प, बिजली, अग्नि व शस्त्रके समान भयंकर होता है ।। ६८ ॥
___ अपानवातरोधज उदावर्त. । तस्माद्वेगो नैव संधारणीयो । दीर्घायुष्य वांछतस्तत्तथैव ।।
शूलाध्मानश्वासहद्रोगहिक्का । रूद्धोऽपानस्तत्क्षणादेव कुर्यात् ।। ६९ ॥
भावार्थ:-इसलिये जो लोग दीर्घायुष्य चाहते हैं वे कभी वेग संधारण नहीं करें अर्थात् उपस्थित वेगोंको नहीं रोके । अपानवायु के राधसे उसी समय शूल, आध्मान, श्वास हृदयरोग, हिचकी, आदि विकार होते हैं । ६९ ।।
मूत्रावरोधज उदावत. मार्गात् भ्रष्टोऽपानवायुः पुरीषं । गाई रुध्वा वक्त्रतो निक्षिपेद्वा ।। . मूत्रे रुद्वे मूत्रमल्प मजेद्वा- । मातो बस्तिस्तत्र शूला भवंति ॥ ७० ॥
भावार्थ:-एवं वह अपानवायु स्वमार्ग से भ्रष्ट होकर मलको एकदम गाढा कर रोक देता है और मुखसे बाहर फेंकता है । मूत्र का रोध होने पर मूत्रा बहुत पोडा २ निकलता है। साथ ही बस्ति में आध्मान (फूल जाना) व शूल होता है ॥७०॥
मलावरोधज उदावर्त. शूलाटोपः श्वासवर्णो विबंधो । हिक्का वक्त्राद्वा पुरीषप्रवृत्तिः ॥ अज्ञानाद्रुद्ध पुरीष नराणम् । जायेदुयत्कर्तिकावान तीत्रा ।। ७१॥ .
भावार्थ:- अज्ञान से मल शूल के वेग को रोक देने से शूल आदोप ( गुडगुडाहट ) श्वास, मल का विबंध, हिचकी, मुग्न से मल की प्रवृत्ति एवं कतरने जैसी तीन पीडा होती है ॥ ७१ ॥
शुक्रावरोधज उदावर्त. मूत्रापानद्वारमुप्कातिशोफः । कृच्छाच्छुक्रव्याप्तमूत्रप्रवृत्तिः । शुक्राश्मयस्संभवंत्यत्र कृच्छान्टुक्रस्यैवात्रापि वेगे निरुद्धे ।। ७२ ॥
भावार्थ:-वीर्य के वेग को निरोन करने पर मूत्रद्वार, अपानद्वार ( गुदा ) व अण्ड में शोफ होता है । और कठिनता से वीर्य से युक्त माकी प्रवृत्ति होती है। .' इस से भयंकर शुक्राइमरी गेंग भी होता है ॥ ७२ ॥
त रोग कहते है |
१ जिस में वात मलमूत्र आदिकोंके भ्रमण होता है उसे उर्व वातविण्मूत्रादीनां आवर्ती भ्रमणं यस्मिन् स उदावतः ।
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