________________
(३८६)
कल्याणकारके भावार्थ:-सेंधालोण, त्रिकटु, हिंगु, वायविडंग इनको चूर्ण कर उसमें घृत व तिलका तेल मिलावे । इस से धूमपान करें । इस स्नैहिक धूमपान से वातज कास शीघ्र दूर होता है, जिस प्रकार कि अकौवे का दूध मनशिला, हरतालको नाश करता है ॥१८॥
वातजकासमें योगांतर. कोष्णगव्यघृतमेव पिबेद्वा । तैलमेव लवणोषणमिश्रम् ॥ ऊषणत्रयकृताम्लयवागू । क्षीरिकामपि पयोऽनिलकासी ॥१९॥
भावार्थ:--यातज कास से पीडित मनुष्य सेंधानमक व मिरच के चर्ण से मिश्रित कुछ गरम घी अथवा तैल पीवें एवं पीपल गजपीपल वनपीपल इनको डालकर की गई खट्टी यवागू , दूध आदि से बना हुआ खीर अथवा दूध ही पीना चाहिए ॥१९॥
वातजकासन योगांतर. व्याघ्रिकास्वरससिद्धकृतं वा । कासमर्दवृषभुंगरसर्वा ॥ पक्कतैलमनिलोद्भवकासं । नाशयत्यभयया लवणं वा ॥ २० ॥
भावार्थ:-कटेहरीके रस से सिद्ध घृत को पीने से अथवा कसोंदी, अडूसा व भृगराजके पक्व तैल को अथवा हरड को नमक के साथ सेवन करनेसे वात से उत्पन्न खांसी नष्ट होती है ॥२०॥
। पैत्तिककास चिकित्सा. पुण्डरीककुमुदोत्पलयष्टी- । सारिवाकथिततोयविपकम् ॥ सर्पिरेव सितया शमयेतं । पित्तकासमसकृत्परिलीढम् ॥ २१॥
भावार्थ:-कमल, श्वेतकमल, नीलकमल, मुलेठी सारिवा उनके काढे से सिद्ध किये हुए वृतको, शक्कर के साथ वार २ चाटे तो पित्तज कास शमन होता है ।। २१॥
पैत्तिककासन योग. पिप्पलीघृतगुडान्यपि पीत्वा । माहिषेण पयसा सहितानि ।। पिष्टयष्टिमधुरेक्षुरसैर्वा । पित्तकासमपहंत्यतिशीघ्रं ॥ २२ ॥
भावार्थः-पीपल, धी व गुड इनको भैंस के दूधके साथ पीने से, अथवा मुलैंठी को ईख के रस में पीसकर सेवन करने से, पित्तज कास शीघ्र नाश होता
१ मष्टमधुरेक्षु इति पाठांतरं ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org