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क्षुद्ररोगाधिकारः
(३८५)
अथ कासाधिकारः।
... कास लक्षण. पाणमारुत उदानसमेतो ! भिन्नकांस्य रवसंनिभघोषः ।। दुष्टतामुपगतः कुरुतेऽतः । कासरोगमपि पंचविकल्पम् ॥ १४ ॥
भावार्थ:-- दूषित प्राणवायु उदानवायु से मिलकर जब मुख्से बाहर आता है तो फूटे हुए कांसके वर्तनके समान शब्द होता है । इसे कास [ खांसी ] कहते हैं । यह भी पांच प्रकार का होता है ॥ १४ ॥
कासका भेद व लक्षण. पजक्षतहतक्षयकासा- | स्तेषु दोषजनिता निजलक्षाः ।।
सि प्रतिहतेऽध्ययनाथैः । सांद्ररक्तसहितः क्षतकासः ॥ १५ ॥
भावार्थ:-वातज, पित्तज, कफज, क्षतज व धातुक्षयज इस प्रकार कास पांच प्रकार का है । दोषजकास तत्तदोषोंके लक्षणोंसे संयुक्त होते हैं। अध्ययनादिक श्रमसे हृदयमें क्षत ( जखम ) होनेपर जो कास उत्पन्न होता है जिसके साथ में गाढा मात्र (खून ) आता है उसे क्षतज कास कहते हैं ॥ १५ ॥
दुर्बलो रुधिरछायमजस्त्रं । ष्टीवति प्रबलकासविशिष्टः। । सर्वदोषजनितः क्षयकासो । दुश्चिकित्स्य इति तं प्रवदंति ॥ १६ ॥
भावार्थ:-धातुक्षय होने के कारण से मनुष्य दुर्बल हो गया हो, अत एव प्रबल खांसी से युक्त हुआ हो, रक्तके सदृश लाल थूक को थूकता हो, उसे क्षयज कास समझना चाहिए । यह कास त्रिदोषजन्य है और दुश्चिकित्स्य होता है ॥१६॥
वातजकासचिकित्सा. . वातजं प्रशमयत्यतिकासं । छर्दनं घृतविरेचनमाशु ॥ स्नेहबस्तिरपि साधुविपकं ! षट्पलं प्रथितसर्पिरुदारम् ।।१७॥
भावार्थ:- तिवृद्ध बातज कासमें वमन, घृतसे विरेचन व ग्नेह बस्तिके प्रयोग करें तो वातज कास शीघ्र ही उपशम होता है । एवं अच्छी तरह सिद्ध किये हुए षट्पल नामक प्रसिद्ध धृत के सेवन से भी वातज खाती उपशमको प्राप्त होती है ।।१७।।
सैंधवं त्रिकटुहिंगविडंग- । इचूर्णित ततिलाइवमिथः । स्नेहधूममपहत्यनिलोत्थम् । कासमपयसेव शिलालम् ॥१८||
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