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________________ कल्याणकारके भावार्थ:-बलवान् श्वास रोगीको पहिले वमन कराकर स्नेहबस्ति आदि अन्य शुद्धियोंकी योजना करनी चाहिए। निर्बल रोगी हो तो उपशम औषत्रियोंले ही चिकित्सा करनी चाहिए ॥ ९ ॥ पिप्पल्यादि घृत व भाङ्यांवि चूर्णः पिप्पलीलवणवर्गविपकं । सपिरेव शमयत्यतिजीर्ण ॥ .. श्रृंगवेरलवणान्वितभार्डी-चूर्णमयमलतैलविमिश्रम् ॥ १० ॥ भावार्थ:--पीपल व लवण वर्गसे सिद्ध किया हुआ घी अत्यंत पुराने श्वास को शमन करता है। सोंठ लवण से युक्त भारंगी' चूर्ण को निर्मल तेलमें मिलाकर उपयोग करें तो भी श्वासके लिए हितकर है ॥ १० ॥ . भृगराज तैल व त्रिफला योग. भृगराजरसविंशतिभागैः। पकतलमथवा प्रतिवापम् ॥ . श्वासकासमुपहंत्यतिशीघ्रं । त्रैफलाजलमिवाज्यसमेतम् ॥ ११ ॥ भावार्थ:-जिस प्रकार हरडं, बहेडा, आंवले के कषाय में घी मिलाकर सेवन करने से श्वास रोग शीघ्र नाश होता है, उसी प्रकार एक भाग तिल के तैलमें वीस भाग भांगरे का रस और हरड़ का कल्क डाल फर सिद्ध कर के सेवन करें तो, श्वास और कास को शीघ्र ही नाश करता है ॥ ११॥ ... .... स्वगादि चूर्णत्वकटुत्रिकफलत्रयभार्डी- । नृत्यकाण्डकफलानि विचूर्ण्य ॥ शर्कराज्यसहितान्यवीला । श्वासमाशु जयतीद्धमपि प्राक् ॥ १२ ॥ भावार्थ:-दालचिनी, सोंठ, मिरच, पीपल, हरड, बहेडा, आंवला व भारंगी नृत्यकांडक (१) का फल इनको अच्छीतरह चूर्ण कर; शक्कर और.घी सहित चाहें तो बहुत दिनके पहिले खुच बढ़ा हुआ भी स्वासरोग शीघ्र दूर होता है ॥ १२ ॥ तलपोतक योग... पिपलीलवणतैलघृताक्तं । मूलमेव तलपाटकमातम् ॥ .. उत्तरीकृतमिदं क्षपयेत्तम् । श्वासमाश्वसुहरं क्षणमात्रात् ॥ १३ ॥ भावार्थ:--पीपल, लवण, तेल व घृत से युक्त तलपाटकके (1) मूल को सेवन करें तो प्राणहर श्वासको भी क्षण भर में दूर करता है ॥ १३ ॥ १ पुस्तके पाटोऽयं नोपलभ्यते । .................................... ........ marathimanus..... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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