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.. कल्याणकारके
भावार्थ:-अत्यधिक रूक्षसे, तालु फाटजाता है सूख जाता एवं महान् श्वास युक्त होता है। इसे तालुशोष रोग कहते हैं। इसमें बातपित्तनाशक घी व तैलसे. मिले हुए औषधियों द्वारा चिकित्सा करना चाहिये ॥ १०१ ॥
तालुपाक लक्षण. महोष्मणा कोपितपित्तमुत्कटं । करोति तालन्यातपाकमद्भुतम् ।। स तालुपाकः पठितो जिनोत्तमैः। तमाशु पित्तक्रिययैव साधयेत् ॥१०२॥
भावार्थः -अत्यधिक उष्ण पदार्थके उपयोगसे पित्त प्रकुपित होकर तालूमें भयंकर पाक उत्पन्न करता है । उसे जिनेंद्र भगवंत तालुपाक रोग कहते हैं। उसे पित्तहर औषधियोंके प्रयोगसे साधन करना चाहिये ॥ १०२॥
सर्घमुखगतरोगवर्णनप्रतिज्ञा. निगद्य तालुप्रभवं नवामयं । मुखेऽखिले तं चतुरं ब्रवीम्यहम् ॥ पृथग्विचारीति विशेषनामकं त्रिदोषनं सर्वसरं तथापरम् ॥ १०३ ॥
भावार्थ:-तालुमें उत्पन्न नष प्रकारके रोगोंका प्रतिपादन कर सम्पूर्ण मुखगत चार प्रकारके रोगोंका अब निरूपण करेंगे। उसमें एक विचारी नामक पृथक् रोग है। दूसरा सर्वसर नामक रोग है जो वात, पित्त व कफसे उत्पन्न होता है ॥ १०३॥
विचारी लक्षण। विदाहपूत्याननपाकसंयुतः । प्रतीनवानकटापत्तकोपजः॥ भवेद्विचारी प्रतिपादितो जिन- । महाज्वरस्सर्वगतो भयंकरः॥१०४ ॥
भावार्थ:--अत्यधिक पित्तके प्रकोप से संपूर्ण मुख में दाह, दुर्गंध, पाक, स्नायुप्रतान व महान ज्वर से संयुक्त जो शोथ उत्पन्न होता है। इसे श्रीजिनेंद्र भगवानने विचारी ( विदारी ) रोग कहा है । यह भयंकर होता है ॥ १०४ ॥
बातज सर्वलर [ मुखपाक ] लक्षण । सतोदभेदप्रचुरातिवेदनैः । सरूक्षविस्फोटगणैर्मुखामयैः ।। समन्वितस्सर्वसरस्सवातज- । स्तमामयं वातहरौषधैर्जयेत् ॥१०५ ।। भावार्थः-मुखमें तोदन, भेदन आदि से संयुक्त अनेक तरह की अत्यधिक
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१ स्नायुप्रतानप्रमवः इति ग्रंथांतरे ।
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