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क्षुद्ररोगाधिकारः
(३३३)
पीडा से युक्त रूक्ष विस्फोट ( फफोले ) हों, इसे वातजन्य सर्वसैर ( मुखरोग ) कहते हैं इसको वातनाशक औषधियोंसे जीतना चाहिए ।। १०५ ॥
पित्तज सर्वसर लक्षण । स दाहपाकज्वरसंयुतैर्मुखं । सरक्तविस्फोटगणेचितं यदा ॥ स पित्तजः सर्वसरोऽत्र वक्त्रज- स्तमाशु पित्तघ्नवरौषधैर्जयेत् ॥१०६।।
भावार्थ:-पित्तके प्रकोपसे दाह, पाकाज्यरसे संयुक्त, लाल चिरफोट [ फफोले ] मुखमें व्याप्त होते हैं इसे पित्तज सर्वसर [ मुखपाक ] कहा है । इसे शीघ्र ही पित्तनाशक श्रेष्ठ औषधियोंके प्रयोग से जीतना चाहिए ॥ १०६ ॥
कफज सर्वसर लक्षण | खरैस्सुशीतैरीतकण्डरैघनै-। रवेदनैः स्फोटगणैः सुपिच्छिलैः ।। .. चितं मुखं सर्वसरो बलासजः । फफापहस्तं समुपाचरेद्भिपक ॥ १०७ ॥
भावार्थ--परुष, शील, खुजलीयुक्त, कठिन, दर्दरहित, पिच्छिल (लिवलिवाहर) आदि जब मुखमें होते हैं उसे कफ विकारसे उत्पन्न सर्वसररोग समझें । उसकी कमहर औषधियों से चिकित्सा करें ॥ १०७ ॥
. सर्व सर्वसररोग चिकित्सा। सपित्तरक्तानखिलान्मुखामयान् । जयेद्विरकै रुधिरप्रमोक्षणैः ।। मरुत्कफोत्थान्वमनैः सुधूमकै-श्शिरोविरेकैः कवलः प्रसारणैः ॥ १०८॥ .
भावार्थ:--पित्तरबल के विकारसे उत्पन्न, समस्त मुखरांगों को विरेचन व रक्तमोक्षण से चिकित्सा करनी चाहिये । वातकफ के विकारसे उत्पन्न मुख गंगोंको वमन, धूमपान, शिरोविरेनन, कवलग्रहण व प्रतिसारण से जीतना चाहिये ।। १०८ ।।
मधूकादि धूपन वर्ति । - मधुकराजादननिबसेंगुदी । पलाशसैरण्डकमज्जमिश्रितैः ॥ '. सकुष्ठमांसीसुरदारुगुग्गुल । प्रतीतसर्जाकसारिवादिभिः ॥ १०९ ॥
सुपिष्टकल्कैः प्रविलिप्तपट्टकं । विवेष्ट्य वति वरवृत्तगर्भिणीम् ॥ विशोषितां प्रज्वलिताअधूमिकां विधाय वक्त्रं सततं मधूपयेत् ॥ ११० ॥
१ यह रोग, मुख, जिव्हा, गला, ओंट, मसूडे, दांत व तालु इन सात स्थानोंमें भी ब्यास होनेसे, इसको सर्वसर रोग कहा है । . .२ सदैव, शुभ इति पाठांतरं ।
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