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(३२०)
कल्याणकारके
दंतहर्षलक्षण. यदा च दंता न सहति संततं । विचवितुं सर्वमिहोष्णशीतजं ॥ स दंतहर्षा भवतीह नामतः । सवातजः स्पर्शविहीनदोषजः ॥ ५२ ॥
भावार्थ:-जब दातोंसे उष्ण, शीत गुणयुक्त किसी भी चीजको चावने को नहीं बनता है उसे दंतहर्ष रोग कहते हैं । यह प्रकुपित वात, पित्त से उत्पन्न होता है ॥ ५२ ॥
- भंजनक लक्षण. मुखं सबकं भवतीह देहिनां । सदंतभंगश्च महातिनिष्ठुरः ॥ त्रिदोषजो भंजनको महागदः । स साधनीयस्त्रिविधौषधक्रमः ॥ ५३ ॥
भावार्थ:- जिस में मनुष्यों के मुख वक्र होता हो, और दांत भी टूटने लगते हैं उसे दंतभजनक रोग कहते हैं । यह त्रिदोषज, एवं भयंकर महारोग हैं। उसको त्रिदोषनाशक औषधिप्रयोग से साधना चाहिये ॥ ५३ ॥
दंतशर्करा, कापालिका लक्षण. घनं मलं दंतघुणावहं भृशं । सदैव दंताश्रितशर्करा मता । कपालवा स्फुटितं स्वयं मलं । कपालिकाख्यं दशनक्षयावहम् ॥ ५४ ॥
भावार्थ:-दंतगत मल ( उनको साफ न करनेसे ) सूखकर गाढा हो जाता है, रेत के समान खरदरास्पर्श मालूम होने लगता है और वहीं दांतके घुनने को कारण होजाता है। इसे दंतशत रोग कहते है । दांत का मल ( उपरोक्त शर्करा) अपने आप ही, टीकरी के समान फूटने लगता है इसे कापालिका रोग कहते हैं। इससे दांत का नाश होजाता है ॥ ५४॥
श्यामदंतक हनुमोक्ष लक्षण. सरक्तपित्तेन विदग्धदंतको । भवेत्सदा श्यामविशेषसंज्ञितः ॥.. । तथैव केनापि विसंगते इनौ । हनुप्रमोक्षोऽर्दितलक्षणो गदः ॥५५॥
भावार्थ:-- रक्त पित्तके प्रकोप से दांत विदग्य होजाते हैं । उसे श्यामक रोग कहते हैं । इससे दांत काले व नीले हो जाते हैं। इसे श्यामदंतक रोग कहते हैं । वातीद्रेकसे चोट आदि लाने से हनुसंधि (टोढी) छूट जाती है चलायमान होती है। इस हनुमोक्ष व्याधि कहते हैं । इस में अर्दितरोगके लक्षण मिलतें हैं ॥ ५५॥
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