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क्षुद्ररोगाधिकारः।
(३१७)
भावार्थ:--अधिक पित्त व वातके कारणसे कफ एकदम सूखकर अपने निवास स्थान नासिकाको भी एकदम सुखा देता है । उसे नासा परिशोष रोग कहते हैं। उसे दूधसे निकाले हुए घृतसे चिकित्सा करनी चाहिये ॥ ३९ ॥
नासागत रोग में पथ्य. हितं सनस्यं घृतदुग्धपायसं । यदेतदुक्लैदकरं च भोजनम् ॥
समस्तनासागतरोगविभ्रमान् । जयेद्यथोक्ताधिकदोपभैषजैः ॥४०॥ ... भावार्थ:-नासारोगोमें नस्य प्रयोग व भोजनमें घृत, दूध, पायस ( खीर) व उत्क्लेद कारक पदार्थोंका उपयोग करना हितकर है । और जिन दोषोंका अधिक बल हो उनको देखकर वैसे ही औषधियोंका प्रयोग करना चाहिये । इससे नासागत समस्त रोग दूर होजायेंगे ॥ ४० ॥
___ सर्वनासारोग चिकित्सा. शिरोविरेकैः शिरसश्च तर्पणैः । सधूमगंडूषविशेषलहनैः । कटूष्णसक्षारविपक्क सत्खलै-- । रुपाचरेत् घ्राणमहामयादितम् ।। ४१ ॥
भावार्थ:-शिरोधिरेचन, शिरोतर्पण, धूम, गण्डूष (कुल्ला ) लेहन, इनसे व कटु, उष्ण, क्षार द्रव्योंसे पकाया हुआ खल, इनसे नासारोगसे पीडित रोगीकी चिकित्सा करें ॥ ४१ ॥
नासार्श आदिकोंकी चिकित्सा. अथार्बुदार्शोधिकशोफनामका- 1 विनाशयेत्तानपि चोदितौषधैः ॥ यदेतदन्यच्च विकारजातकं । विचार्य साध्यादि भिषाग्विशेषवित् ॥४२॥
भावार्थः ---इसी प्रकार नासागत अर्बुद, अर्श, शोफ आदि रोगोंकी भी पूर्व कथित औषधियोंसे चिकित्सा करें । इनके अतिरिक्त नाकमें अन्य कोई भी रोग उत्पन्न हो उनकी दोषबल आदिकोंको देखकर कुशल वैद्य साध्यासाध्यादि विचार कर चिकित्सा करें ॥ ४२ ॥
नासारोगका उपसंहार व मुखरोग वर्णन प्रतिज्ञा. इति क्रमात्त्रिंशदिहकसंख्यया । प्रकीर्तिता घ्राणगता महामयाः॥ 2. अतो मुखोत्थाखिलरोगसंचयान् । ब्राम्यशेषाकृतिनामलक्षणः ॥ ४३॥
भावार्थ:-- इस प्रकारसे ३१ प्रकारसे नासागत महारोग कहे गये है। उनका निरूपण कर अब मुखगत समस्त रोगोंको, लक्षण व नामनिर्देशके साथ कहेंगे ॥ ४३॥
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