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(३१४)
कल्याणकारके
कर्णरोगचिकित्सा का उपसंहार. इति प्रयत्नादिह विंशति स्थिताः । तथैवमष्टौ श्रवणामया मया। . प्रकीर्तितास्तेषु विशेषतो भिषक् । स्वयं विदध्याद्विधिमात्मबुद्धितः ॥२७॥
भावार्थः-इस प्रकार मैने अाईस प्रकारके जो कर्णरोग बतलाये हैं उनके दोषादिकोंको विचारकर बुद्धिमान् वैद्य अपनी बुद्धिसे उनकी चिकित्सा प्रयत्न के साथ करें ॥ २७ ॥
अथ नासारोगाधिकारः।
नासागतरोगवर्णन प्रतिज्ञा. अथात्र नासागतरोगलक्षणैः । चिकित्सितं साधु निगद्यतेऽधुना । विदार्य तन्नामविशेषभैषज- । प्रयोगसंक्षेपवचेििवचारणैः ॥२८॥
भावार्थ:-अब यहांपर नाक के रोगोंका नाम, उनका लक्षण, योग्य औषधियोंका प्रयोग व चिकित्सा क्रमआदि संक्षेपसे कहा जाता है ॥ २८ ॥
पीनसलक्षण व चिकित्सा. विदाहधमायनशोषणद्रव-नवेत्ति नासागतगंधजातकम् ॥ कफानिलोत्थोत्तमपनिसामयं । विशोधयेद्वातकफघ्नभैषजैः ॥२९॥
भावार्थ:-जिसकी नाकमें दाह, धूवेके समान निकलना, सूखजाना व द्रव निकलना एवं सुगंध दुर्गंध का बोध न होना, कफ व वातके विकारसे उत्पन्न पीनस नामक रोगका लक्षण है उसको वात व कफहर औषधियोंसे शुद्ध करना चाहिये ॥ २९ ॥
पूतिनासा के लक्षण व चिकित्सा. विदग्धदोषैर्गलतालुकाश्रितै- । निरंतरं नासिकवायुरुद्धतः । सपूतिनासां कुरुते तथा गलं । विशोधयेत्तच्छिरसो विरेचनैः ॥ ३०॥ .
भावार्थ:--प्रकुपित पित्तादि दोषों से वायु संयुक्त होकर जब गला, व तालुमें आश्रित होता है तो, नाक व गले अर्थात् मुंह से दुगंध वायु निकलने लगता है
____ अट्ठाईस प्रकारके कर्णरोग:-कर्णशूल, कर्णनाद बाधिर्य, श्वेड, कर्णनाव, कर्णकण्ट्र, कर्णगूथ, कृमिकर्ण प्रतिनाह, कर्णपाक, पूर्तिकर्ण, दोषज, क्षतज, इस प्रकार द्विविध विद्रधि, वाताश पित्ताश, क.फार्श, सन्निपार्श, इस प्रकार जुतुर्विध अर्श. बातार्यद, पित्तार्बुद कफार्बुद रक्तार्बुद, मांसार्बुद, मेदोऽर्बुद, शालाक्यतत्रोक्त ( अक्षरोग विज्ञान में कहागया ) सन्निपार्बुद, इस प्रकार सप्तविध अर्बुद, वातज, पित्तज, कफज, सान्निपातज इस प्रकार चतुर्विध शोथ ये अष्ठाईस कर्णरोग हैं।
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