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________________ ( ३०४ ) कल्याणकारके यह अत्यंत भयंकर है । इसे वैद्य छोड देवें अर्थात् इस की चिकित्सा न करें । वह रोगी 1 ज्यादासे ज्यादा १५ दिनतक जीयेगा ॥ ६० ॥ स्तनरोग चिकित्सा. 11 स्तनगतबहुरोगान् दोषभेदादुदीक्ष्य । श्वयथुमपि विचार्यामं विदग्ध विपक्वं ऋमयुतविधिना साध्यं भिषक् साधयेत्तत् । विषमकृतविशेषाशेष भैषज्यमार्गः ॥ ६१ ॥ भावार्थ:-- : -- स्तनगत अनेक रोगोंको दोषोंके भेदके अनुसार देखकर उनकी चिकित्सा करनी चाहिये । यदि शोफ ( स्तन विद्रधि आदि ) भी हो तो उसके भाम विदग्व, त्रिपक्क भेदोंको विचार कर आमादि अवस्थाओं में पूर्वोक्त त्रिलय.. विवरण आदि तत्तद्योग्य चिकित्सा को, अनेक योग्य नानाप्रकारके औषधियों द्वारा करें ॥ ६१ ॥ पाचन, क्षुद्ररोगोंकी चिकित्साका उपसंहार. इति कथित विकल्पान् क्षुद्ररोगानशेषा - । नभिहितवर भैषज्यप्रदेहानुलेपैः ॥ रुधिरपरिविमोक्षैः सोपना हैरनेकै- । स्तदनुविहितदोषप्रक्रमैः साधयेत्तान् ॥ ६२ ॥ भावार्थ:- - इस प्रकार अभीतक वर्णित नानाभेदोंसे विभक्त संपूर्ण क्षुद्र रोगोंको उनके कारण लक्षण आदि जानकर उन दोषोंके अनुसार पूर्वकथित योग्य प्रदेह, लेपन, रक्तमोक्षण, उपनाहन आदि विधियोंसे उनकी चिकित्सा करें ॥६२॥ सर्वरोगचिकित्सा संग्रह | Jain Education International पृथगपृथगपि प्रख्यातदोषैः सरक्तै- । रिबहुविधमार्गाः संभवत्युद्धास्ते ॥ सहजनिजविकारान् मानसान् सोपसर्गान् ॥ अपि तदुचितमागैस्साधयेयुक्तियुक्तैः ॥ ६३ ॥ भावार्थ:- वात, पित्त, कफ, अलग [ एक ] वा दो २ या तीनों एकसाथ मिलकर, अथवा रक्त को साथ लेकर, स्वस्त्र कारणोंसे प्रकुपित हो जाते हैं और वे प्रकुपित दोष शरीर के अनेकविध मार्गीको अर्थात् नाना प्रकार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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