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________________ क्षुदरोगाधिकारः (३०३) भावार्थ:-श्लेष्म विकारसे यौबनके मदसे मुखमें जो पिडका होते हैं, जो कुछ मोटे व विरल [थोडे होते हैं, उन्हें तारुण्यपिडका कहते हैं। उनको योग्य कफहर लेपन, नस्यप्रयोग आदि उपायोंसे जीतना चाहिये, ऐसा बुद्धिमान मुनियोंने कहा है ॥५॥ - वर्तिका लक्षण. डंपितपवन दोषायेनकनाभिघाता-। प्रजननमुखचमोलंबमानः प्रसूनम् ॥ .. जलमिह निरुणद्धि प्रस्त्रवं कृच्छ्रकृच्छात् । प्रसरति बहुदुःखं वर्तिकाख्यं तमाहुः ॥ ५८ ॥ . भावार्थ:--यातदोषके उद्रेक होनेसे या किसीके आघातसे मुखका चर्म लंबा होजाता है उसमें पूय भरकर थोडी बहुत कठिनतासे उसका स्त्राव होता है व अत्यविकवेदना होती है, उसे वर्तिका नाम रोग कहते हैं ॥ ५८ ॥ सन्निरुद्धगुदलक्षण. मलमलमतिवेगाघ्राणशीलमनुष्यैः । प्रतिदिममिह रुद्धं तत्करोत्याशु सूक्ष्मं ॥ गुदमुखमतिवातात्कष्टमेतद्विशिष्टैः । परिहतपरिदुःखं सन्निरुद्धं गुदाख्यम् ॥ ५९ ॥ भावार्थ:--जो मलके वेगको धारण करते रहते हैं, तब अशनवायु प्रकुपित होकर उनके गुदाको रोक कर ( गुदाद्वार के चर्मको संकोचित करके ) गुदा के द्वारको 'छोटा कर देता है । जिससे अत्यंत कष्ट के साथ मलविसर्जन होता है । इसे सन्निरुद्ध गुद कहते हैं । यह अतीव दुःखको देने वाला कठिन रोग है ॥५॥ अग्निरोहिणी लक्षण. त्रिकगलकरपाचोधिप्रदेशेषु जातां । . देवदहनशिखाभामंतकाकारमूर्तिम् ॥ कुपितसकलदोषामग्निरोहिण्यभिख्यां । परिहर पिटकाख्यां पक्षमात्रावसानाम् ॥ ६० ॥ भावार्थ:-त्रिक ( पीठके बांसके नीचे की वह जोड जहां तीन हाड मिले हैं ) 'गला, हाथ, पार्श्व, व पाद इन प्रदेशोमें समस्तदोषोंके कुपित होनेसे उत्पन्न दावानलकी -शिखाके समान दाहसहित, यमके समान रहनेवाले पिडकाको अग्निरोहिणी कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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