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पूर्ण होंगे ? क्या उन महर्षियोंकी कृतियां सबकी सब नष्ट होगई ? या उन्होने ग्रंथरूपमें रचना ही नहीं की थी ? उन महर्षियोने वैद्यक ग्रंथोंकी रचना की है यह बात प्रकृत ग्रंथ के निम्नलिखित श्लोकसे स्पष्ट होता है ।
शालाक्यं पूज्यपादप्रकटितमधिक शल्यतंत्रं च पात्रस्वामित्रोक्तं विषाग्रग्रहशमनविधिः सिद्धसेनैः प्रसिद्धैः । काये या सा चिकित्सा दशरथगुरुभिर्मेघनादैः शिशूनां वैधं वृष्यं च दिव्यामृतमपि कथित सिंहनादेमुनौद्रेः ॥ अ. २० श्लोक ८५
अर्थात् पूज्यपाद आचार्यन शालाक्य-शिराभेदन नामक ग्रंथ बनाया है । पात्र स्वामिने शल्यतंत्र नामक ग्रंथ की रचना की है । सिद्धसेन आचार्य ने विष व उग्र ग्रहोंका शमनविधि का निरूपण किया है । दशरथ गुरु व मेघनाद आचार्य ने बाल रोगोंकी चिकित्सा सम्बन्धी ग्रंथ का प्ररूपण किया है। सिंहनाद आचार्य ने शरीरबलवर्द्धक प्रयोगों का निरूपरण किया है । और भी लीजिए-~.. अष्टांगमप्यखिलमत्र समंतभद्रैः प्रोक्तं सविस्तरवचो विभर्विशेषात् ।।
संक्षेपतो निगदितं तदिहात्मशक्त्या कल्याणकारकमशेषपदार्थयुक्तम् ॥
अर्थात् श्रीसमंतभद्राचार्यने अष्टांग नामक ग्रंथ में विस्तृत व गंभीर विवेचन किया है। उसके अनुकरण कर मैंने यहांपर संक्षेप से यथाशक्ति संपूर्ण विषयोंसे परिपूर्ण इस कल्याणकारक को लिखा है। अब पाठक विचार करें कि वे सब ग्रंथ कहां चले गए ? नष्ट होगए ! इसके सिवाय हमारे पास और क्या उत्तर है ? हा! जैनसमाज ! सचमुचमें तेरा दुर्भाग्य है ! न मालुम उनमें कितने अमूल्य-रत्न भरे होंगे ? ..
- श्रीपूज्यपाद. . महर्षि पूज्यपादने वैद्यक ग्रंथ का निर्माण किया है, यह विषय अब निर्विवाद हुआ है । प्रकृत ग्रंथ में भी आचार्यने पूज्यपाद के ग्रंथ का उल्लेख किया है । इस के अलावा शिलालेखों में भी उल्लेख मिलता है ।
न्यासं जैनेंद्रसज्ञ सकलबुधनुतं पाणिनीयस्य भूयो । न्यास शावतारं मनुजासतिहित वैद्यशास्त्रं च कृत्वा । यस्तत्वार्थस्य टीका व्यरचयदिह तो भात्यसौ पूज्यपादः । स्वामी भूपालगंधः स्वपरहितक्या पूर्णदग्बोधवृत्तः ।।
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