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कल्याणकारके भावार्थ:--वातात्पन्न अण्डवृद्धिसे पीडित रोगी को कोई स्निग्ध विरेचन ( विरेचक घृत आदि ) औषध पिलाकर विरेचन कराना चाहिये । इस के लिये, दूध में एरण्ड तैल मिलाकर पिलाना अत्यंत हितकर है । अथवा निरूह व अनुवासन बस्ति का प्रयोग करना चाहिये || ८० ॥
स्वेदन, लेपन, बंधन व दहन । संदव संस्वदविधायनौषध- । प्रलेपबंधैरपि वृद्धिभुद्धताम् ॥ उपाचरेदाशु विशेषतो दृढं । शलाकया वाप्यधरोत्तरं दहेत् ।। ८१ ।।
भावार्थ:--अधिक बढी हुई वृद्धा को हमेशा स्वेदन औषधियोंद्वारा पेदन, लेपन औषधियोंसे लेपन, बंधन औषधियोंस बंधन आदि क्रियाओंसे उपचार कराना चाहिये । जो वृद्धि विशेष दृढ [मजबूत है उसे अग्नि से तपापी गयी शठा कासे नीचे के व उत्तर भाग को जला देवें ॥ ८१ ।।
पित्तरक्तजवृद्धि चिकित्सा । स पित्तरक्तोद्भववृद्धिबाधितं । विरेचनैः पित्त हरेविंशोधयेत् । जलायुकाभिवृषणस्थशोणितं । प्रमोक्षयेच्छीततरविलेपयेत् ॥८२ ॥
भावार्थ:-पित्तरक्तके विकारसे उत्पन्न वृद्धिमें पित्तहार औषधियोंसे विरेचन कराना चाहिये । एवं जलौंक लगवाकर अण्डके दुष्ट रक्तका मोक्षण ( निकालना ) कराना चाहिये और उसपर शीत औषधियोंका लेपा करना चाहिये ॥ ८२ ॥
कफजवृद्धि चिकित्सा | कफप्रवृद्धिस्त्रिफलाकटुत्रिकै- । र्गवां जलैः क्षारयुतैस्सुपेषितैः ।। प्रलेपयेत्तच्च पिवेदथातुरः । सुखोष्णारुपनाहयेत्सदा ।। ८३ ॥
भावार्थः --कफवृद्धि में त्रिफला ( हरड, बहेडा, आंवला ) व विकलु [सोट, मिरच पीपल] को क्षारयुक्त गोमूत्र के साथ अच्छीतरह पीसकर लेपन करना चाहिये । और उसी औषधिको रोगी को पिलाना चाहिये । एवं च उष्ण वर्गो अर्थात् उप्णगुण युक्त औपवियोंका पुलिया यांवना चाहिये ॥ ८३ ॥
में वृधिचिकिता। विदार्य मेदःप्रभवातिवृद्धिका । विवर्य यत्नादिह सीवनी भिषक् ।। व्यपोध मेदः सहसाविशोधन-1 रुपाचरत्सक्रमसोष्णबंधनैः ॥ ८४ ॥
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