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महामयाधिकारः।
(२४९) अशं निदान । वेगधारणचिरासनविष्ट-। भाभिघातविषमाद्यशनाद्यैः । अर्शसां प्रभवकारणमुक्तं । वातपित्तकफरक्तसमस्तैः ॥ ८४ ।।
भावार्थः --मलमूत्र के वेगको रोकना, बहुत देर तक बैठे रहना, मलावरोध, चोट लगना, विषम भोजन आदि कारणोंसे दूषित व इनके एक साथ कुपित होनेसे, पृथक: २ वात, पित्त, कफ व रक्तोंसे अर्श रोगकी उत्पत्ति होती है ।। ८४ ॥
अर्शभेद व वातार्श लक्षण | पविधा गुदगदांकुरजातिः । प्रोक्तमार्गसहजक्रमभेदात् ।। वातजानि परुषाणि सशूला- । मानवातमलरोधकराणि ॥ ८५ ॥ .
भावार्थ:-वातज, पित्तज, कफज, रक्तज, सन्निपातज एवं सहन इस प्रकार अर्श [ बवाशीर ] के छह भेद हैं। इनमें वातज अर्श कठिण होते हैं एवं शूल ७.मान ( अफराना ) वात व मलरोध आदि लक्षण उस में उत्पन्न होते हैं ॥ ८५ ॥
पित्तरक्त कफार्शलक्षण । पित्तरक्तजनितानि मृदून्य- । त्युष्णमस्रमसद्विसृजति ॥ . . .. श्लेष्मजान्यपि महाकठिनान्य-- । त्युग्रकण्डुरतराणि बृहन्ति ॥ ८६ ॥
। भावार्थ:-पित्त व रक्तज अर्श मृदु होते हैं । अत्युष्ण रक्त जिनमें बार २ ... पडता है । श्लेष्मज अति कठिण होते हैं । देखनेमें अन्य अर्शी की अपेक्षा बडे होते हैं । एवं उसमें बहुत अधिक खुजली चलती है ॥ ८६ ॥
सन्निपातसहजार्शलक्षण । सर्वजान्यखिललक्षणलक्ष्या- । णीक्षितानि सहजान्यतिसूक्ष्मा- ॥ ण्युक्तदोषसहितान्यतिकृच्छ्रा- । ण्यर्शसां समुदितानि कुलानि ।। ८७ ॥
भावार्थ:--सन्निपातज बबासीर में, वातादि पृथक् २ दोषोत्पन्न, अर्शो में पाये जाने वाले, पृथक् २ लक्षण एक साथ पाये जाते हैं। अर्थात् तीनों दोषों के लक्षण मिलते हैं । सहज ( जन्मगत ) अर्श अत्यंत सूक्ष्म होते हैं, एवं इसमें सन्निपातार्शमें प्रकट होनेवाले सर्व लक्षण मिलते हैं। । क्यों कि यह भी सन्निपातन है ] । उपरोक्त सर्व प्रकार के अर्शके, समूह कष्ट साध्य होते हैं ॥ ८७ ।।
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