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( २४८ )
भावार्थ:--- बालक के आकार और शरीरचष्टाको देखकर एवं उसके विषय मे बाईसे पूछकर भूत विकार अर्थात् बालग्रह रोगकी परीक्षा करें। यदि बालग्रह मौजूद हो तो उसकी सम्पूर्ण चिकित्सा करनी चाहिये ॥ ७९ ॥
बालग्रहचिकित्सा ।
कल्याणकार
होमधूमवलिमण्डलयंत्रान् । भूततंत्र विहितौषधमागत् ॥
संविधाय शमयेच्छमनीयम् । बालकग्रहगृहीतमपत्यम् ॥ ८० ॥
भावार्थ:- बालग्रहसे पीडित बालकको होम, धूंबां, वली, मण्डल, यंत्र, एवं भूत तंत्रोक्त भूतोंको दूरकरने वाली औषधियोंसे उपशम करना चाहिये ॥ ८० ॥ बालरोग चिकित्सा.
आमयानपि समस्त शिशूनां । दोषभेदकथितौषधयोगः ॥ साधयेदधिक साधनवेदी । मात्रयात्र महतामिव सर्वान् ॥ ८१ ॥
भावार्थ:- प्रकुपित दोषोंके अनुसार अर्थात् तत्तद्दोषनाशक औषधियों के योगों द्वारा वय, बल, दोषादिके अनुकूल मात्रा आदिको कल्पना करते हुए जिस प्रकार बडों ( युवादि अवस्थावालों) की चिकित्साकी जाती है उसी विधिके अनुसार उन्ही औषधियोंसे सम्पूर्ण रोगोंकी चिकित्सा कार्यमें अत्यंत निपुण वैद्य बालकों की चिकित्सा करें ॥ ८१ ॥ बालकको अभिकर्म आदिका निषेध.
अग्निकर्मसविरेकविशेष- । क्षारकर्मभिरशेषीशशूनाम् ॥
आमयान्न तु चिकित्सयितव्या । स्तत्र तत्तदुचितेषु मृदुस्यात् ॥८२॥ भावार्थ - बालकों के रोगोंकी चिकित्सा अग्निकर्म, विरेक, क्षारकर्म शस्त्रकर्म, वमन आदि अग्निकर्म आदिसे नहीं करना चाहिये । साध्य रोगों में तदनुरूप मृदु क्रियाबोसे करनी चाहिये ॥ २॥
अथारीरोगाधिकारः । अर्शकथन प्रतिज्ञा । "
मूढगर्भमखिलं प्रतिपाद्य | मोघदुतमहामय संव-- ॥
Paraft निदान चिकित्सां । स्थानरिष्टसहितां कथयामि ॥८३॥
प्रकार मूढगर्भ विप्रतिपादन कर महारोगसंबंधी अर्थ
भावार्थ::---इस रोग [ बबासीर ] के निदान चिकित्सा, उसके स्थान वरिष्टका ( मरणचिन्ह ) कथन करेंगे इस प्रकार आचार्य प्रतिज्ञा करते हैं ॥ ८३ ॥
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