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________________ कल्याणकारके किसीका पेट, इसी प्रकार किसी २ के पाद और मस्तक एक साथ मिलजानेसे कटिप्रदेश पहिले आजाता है ।। ४९ ॥ . मूढगर्भ का अन्य भेद । योनिवायुगतपादयुगाभ्यां । प्राप्नुयाबहुविधागमभेदैः ॥ मूढगर्भ इति तं प्रविचार्या-- । श्वाहरेदसुहरं निजमातुः ॥ ५० ॥ भावार्थ:----योनिगत कुषित वातसे दोनों पाद ही पहिले आते हैं । इस प्रकार गर्भ अनेक प्रकारसे बाहः आता है इसलिए मूढगर्भका भी अनेक भेद हैं । उस समय मूढगर्भ की गति को अच्छी तरह विचार कर जैसा भी निकल सके, बच्चेको शीघ्र बाहर निकालना चाहिए । नहीं तो वह माताके प्राणका घातक होगा ॥ ५० ॥.... मूढगर्भका असाध्य लक्षण । वेदनाभिरतिविश्रुतमत्या-- । ध्मानपीडितमतिप्रलपंती ॥ मूर्छयाकुलितमुद्गतदृष्टी । वर्जयेदधिकमूढजगाम् ॥ ५१ ॥ भावार्थः-----अत्यंत वेदनामे युक्त, आध्मानसे पीडित, अत्यंत प्रलाप करती हुई, मूर्छाकुलित व जिसकी दृष्टी ऊपरकी ओर हो ऐसी मूढगर्भवाली स्त्री को असाध्य समझकर छोडें ॥ ५१।। शिशुरक्षण! प्राणमोक्षणमपि प्रमदायाः । स्पंदनातिशिथिलीकृतकुक्षिम् । प्राविबुध्य जठरं प्रविपाट्य । प्रोद्धरत्करुणया तदपत्यम् ।। ५२ ॥ भावार्थ:-श्री का प्राग इट जानेपर भी यदि एंट गेंग फडकता हो, पेट शिथिल हो गया हो तो ऐसी अवस्था को पहिले ही जानकर दयाभावसे बच्चे को बचाने की इच्छा से, पेटको चीर कर उसे बाहर निकाले । ५२ ॥ मृतगर्भ लक्षण। श्वासपूतिरतिशूलपिपासा । पाण्डवक्त्रमचलोदरतात्या- ।। भानमाविपरिणाशनमेत- । जायते मृतशिशावबालायाः ॥ ५६ . भावार्थः --यदि बच्चा पेटमें मर गया तो माताको वासगंध, अति:ल, प्यास, पाण्डरामुख, निश्चलपेट, अति आध्मान [ अफराना ] प्रसववेदनविनाश ये सब विकार प्रकट होते हैं ।। ५३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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