________________
महामयाधिकारः।
(२४१)
भावार्थः-अत्याधिक वाहनमें बैठने से, अधिक चलनेसे, स्खलन (पैर फिसलना) होनेसे, मैथुन करनेसे, कहीं गिरपडनेसे, चोट लगनेसे, जिस प्रकार वृक्षसे फलच्युत होता है उसी प्रकार गर्भ अपने स्थानसे अर्थात् गर्भाशयस च्युत होकर गिरजाता है ( इसे गर्भपात कहते हैं ) ॥ ४६ ॥
.. गर्भस्नान स्वरूप । गर्भघातविपुलीकृतवायुः । पार्श्ववस्त्युदरयोनिशिरस्था-॥ नाहशूलजलरोधकरोऽयं । सावयत्यतितरां तरुणचेत् ॥ ४७ ॥
भावार्थ:-वह गर्भ यदि तरुण ( चारेमहीनेतक का ) हो तो गर्भके आघातसे उद्रिक्तवायु पार्श्व, बस्ति उदत्योनि व शिर आदि स्थानोको पाकर आध्मान, शूल, मूत्ररोध को करते हुए अत्याधिक रक्त का स्राव करता है । ( इसी अवस्थाको गर्भस्राव कहते हैं ) ॥ ४७ ॥
मूढगर्भलक्षण । कश्चिदेवमभिवृद्धिथुपेतोऽ- । पानवायुविपुटीकृतमार्गम् ॥ मूढगर्भ इति तं प्रवदंति । द्वारमाश्वलभमानयसुघ्नम् ॥ ४८ ।।
भावार्थ:--विना किसी उपद्रव के, कोई गर्भवृद्धि को प्राप्त होकर जब वह प्रसवोन्मुख होता है, तब यदि अपानवायु प्रकुपित हो जाये तो वह गर्भ की गति को विपरीत कर देता है। इसलिये, उसे निर्गमनद्वार शीघ्र नहीं मिल पाता है । विरुद्ध क्रम से बाहर निकलने लगता है। इसे मूढगर्भ कहते हैं। यदि इस की शीघ्र चिकित्सा न की जाय तो प्राणघात करता है ॥ ४९ ॥
मूढगर्भकी गतिके प्रकार। कश्चिदेव करपादयुगाभ्या-- । जुत्तमांगविनिवृत्तकराभ्याम् । पृष्ठपार्श्वजठरेण च कश्चित् । स्फिकछिरोंघिभिरपि प्रतिभुग्नः ॥४९।।
भावार्यः---उस मूढगर्भसे पीडित होनेपर किसी किसी बालकका सबसे पहिले हाथ पाइ एक साथ बाहर आते हैं। किसी २के मस्तक ही बाहर आजाता है। हाथ अंदर रहजाता है। किसी २ बालककी पीठ य बगल बाहर आजाते हैं और
१ पांचवे या छटवे महीनेमें जो गर्भ गिरजाता है उसे गर्भपात कहते हैं। २ प्रभमसे चार महिनेतक जो गर्भ गिरजाता है उसे गर्भस्राव कहते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org