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________________ महामयाधिकारः।। (२३७) उसको पकावे । फिर अच्छे कपडेसे छानकर उस द्रवमें हींग, जीरा, सोंट चाव चित्रक कालीमिरच अजमोद " तीनों प्रकार के पीपल, इनके समांश चूर्ण को डालकर तबतक पकावे जबतक गाढा न हो इसे कन्यागलपण काह हैं। यह बातविकारको नाश करता है ॥ २६ ॥ २७ ॥ २८ ॥ २९ ॥ अग्निमांद्यगुदनांकुरगुल्म- । ग्रीथकीटकठिनादरशूला॥ नाहकुक्षिपरिवतविधी । सारांगशमनं लवणं तत् ।। ३० ॥ भावार्थ:-यह लवण अग्निमांद्य, वयः रि, गुलम, अंथि, कृमिरोग कठिनोदर, शूल, आध्मान, कुक्षि, परिवर्त, हजा; अतिसार आदि अनेक रोगोंको उपशमन करता है ॥ ३० ॥ साध्यासाध्य विचारपूर्वक चिकित्सा करनी चाहिए । उक्तलक्षणमहानिलरोगे- प्वप्यसाध्यमधिगम्य विधिज्ञः ॥ साधयेदधिकसाधनवेदी । वक्ष्यमाणकथितोषधयोगैः ॥ ३१ ॥ .: भावार्थः----इस प्रकार लक्षणसहित कहे गये वातरोगों में चिकित्सा शाख में कुशल वैद्य साध्यासाव्यका निर्णय करें । और साध्यरोगोंको आगे कहनेवाले व कहे गये औषधियोंके प्रयोग से साध्य करें ॥ ३१ ॥ अपतानकका असाध्यलक्षण । स्रस्तलोचनमतिश्रमबिंदु-। व्याप्तगात्रमभिभितमेदम् ॥ मंचकाहतबहिर्गतदेहम् । वर्जयेत्तदपतानकतप्तम् ।। ३२ ॥ भावार्थ:-- जिसकी आंखे खिसक गई हो, अतिश्रमसे युक्त हो जिसके शरीरमें बहुतसे चकत्ते होगये हों, जिसका शिश्न बहुत बढ़ गया हो, खाटपर हाथ पैरको खूब पटकता हो व उस से बाहर गिरता हो ऐसे अपतानक रोगीको असाध्य समझकर छोडना चाहिए ॥ ३२ ।। पक्षाघातका असाध्यलक्षण शूनगात्रमपमुप्तशरीरा- । मानभुनतनुपरुजार्तम् । वर्जयेदधिकवातगृहीतं । पक्षघातमरुजं परिशुष्कम् ॥ ३३ ॥ भावार्थ:-- जिसका शरीर सूजगया हो, सुप्त ( स्पर्शज्ञान शून्य.) हुआ हो, आध्मान (अफराना) से युक्त हो, नमगया हो, व कम्पसे युक्त हो, अत्यधिक वातसे गृहीत १ पिपली २ जलपिप्पली ३ गजपिप्पली. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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