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________________ (२३६) कल्याणकारके तत्सुपात्रनिहितं प्रपिधाया - रण्यगोमयम हाग्निविदग्धम् ॥ पत्रनामलवणं पवनघ्नम् । ग्रंथिगुल्मकफशोफविनाशम् ॥ २४ ॥ भावार्थ:----करंज, छोटी कटेली, बडी कटेली, पूती करंज, चित्रक, गोखुर मोखा, पुनर्नवा, एरण्ड इनकी पत्तियोंको समभाग लेकर चूर्ण करें । इस चूर्ण के बराबर समुद्र नमक मिलाकर उसे एक अच्छे मिट्टी के घडेमें डालकर, उसके मुंह बंद कर दें । फिर जंगली कण्डोंसे एक लघु पुष्ट देवें [ जलाये । बस औषध तैयार होगया । इसका नाम पत्रलवण है। इसके सेवन से वातरोग नाश होते हैं। तथा ग्रंथि, गुल्म, कफ, और शोथ ( सूजन ) को नष्ट करता है ॥ २३ ॥ २४ ।। क्वाथ सिद्धलवण। नक्तमालपिचुंमदपटोला- पाटलीनृपतरूत्रिफलाग्नि- ॥ काथसिद्धलवणं स्नुहिदुग्धो- मिश्रितं प्रशमयेदुदरादीन् ॥२५॥ भावार्थ:-करंज, नीम, पटोलपत्र (कडबी परवल) पाढ, अमलतास की गूदा त्रिफला, चित्रक इनको समांश लेकर बने हुए काथसे सिद्ध नमक में थोहरका दूध मिश्रकर उपयोगमें लेवें तो उदरादि अनेक रोगोंको दूर करता है ॥ २५ ॥ कल्याण लवण। पारिभद्रकुटजार्कमहाव- क्षापमार्गनिचुलाग्निपलाशान् । शिवशाकबृहतीद्वयनादे-- याटरूषकसपाटलबिल्लान् ॥ २६ ॥ नक्तमालयुगलामलचव्या- रुष्करांघ्रिपसमूलपलाशान् । वैजयंत्युपयुतान् लवणेनो- मिश्रितान्कथितमार्गविदग्धान् ॥२७॥ षड्गुणोदकविमिश्रितपक्का- गालितानतिघनापलवस्त्रे । तवं परिपचेत्प्रतिवापै-हिंगुजीरकमहौषधचव्यैः ॥ २८ ॥ चित्रकर्मरिचदीप्यकमित्रैः । पिप्पलीत्रिकयुतैश्च समांशैः । चूर्णितैर्बहलपक्कमिदं कल्याणकाख्यलवणं पवनघ्नम् ॥ २९ ॥ भावार्थ:-बकायन, कुटज, अकौवा, योहर, लटजीरा, चित्रक, पलाश, सेंजन, दोनों ( छोटी बडी ) कटेली, अडूसा, पाढ, बेल, दोनों ( करंज पूतीकरंज ) करंज, चाव, भिलावा, पलाशमूल, अगेथु इन सब औषधियोंको चूर्ण कर उसमें सेंधालवण सन्मिश्रण करके पूर्वोक्त प्रकारसे जलाना चाहिये । तदनंतर उसे षड्गुण जल मिलाकर १ औषधियोंके क्वाथ में उसके बराबर सेंधानमक डालकर तबतक पकावे कि वह जबतक गाढा न होवे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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