________________
(२३२),
कल्याणकारके
मनुष्यके शरीरके बराबर लम्बा और चौडा जमीन खोदकर उसमें खरकी लकड़ी भरकर अलावे । जब वह अच्छीतरह जलजात्रे उसी समय कोयला निकालकर दूध छाछ कांबी आदि छिडककर उसपर बातघ्न निर्गुण्डी एरण्ड, आक आदिके पत्तियोंको विछावे वादमें उसके ऊपर रोगीको सुलावे । ऊपरसे कम्बल आदि ओढावे। इससे पसीना आता है । इत्यादि विधियोंसे जो स्वेद निकाला जाता है इसे ऊष्मस्वेद कहते हैं। . ___ (४)द्रवस्वेदः-वातघ्न ओषधियोंके गरम काढेको लोह ताम्र आदिके बड़े पात्रामें भरकर उसमें तैलसे मालिश किये हुए रोगीको बैठालकर ( रोगीका शरीर छाती पर्यंत काढेमे डूबना चाहिये ) जो पसीना लाया जाता है अथवा रोगीको खाली वर्तनमें बैठाल कर ऊपरसे काढेकी धारा तबतक गिराये जब तक कि नाभिसे छह अंगुल ऊपर तक बडू जावे इससे भी पसीना आता है इनको द्रवस्वेद कहते हैं । इसी प्रक.र घी दूध तेल आदि से यथायोग्य रोगोंमें स्वेदन करा सकते हैं ।। ६॥
वातनउपनाह। तैलतक्रदघिदग्धघृताम्लैः । तण्डुलैर्मधुरभेषनवगैः ।। क्षारमूत्रलवणैस्सह सिद्धं । पत्रबंधनमिदं पवनध्नम् ॥ ७ ॥
भावार्थ:--तैल, छाछ, दही, घृत अम्ल पदार्थ, चावल, व मधुर औषधिवर्ग यवक्षारादि क्षार गोमूत्र व सेंधवादि लवणोंके द्वार' सिद्ध पुलटिसको बांधकर उसके ऊपर वातघ्न पत्तोंका प्रतिबंधन करना चाहिये । यह वातहर होता है ॥ ७ ॥
सर्वदेहाश्रितवातचिकित्सा सर्वदेहमिहसंश्रितवातं । वातरोगशमैनरवगौहः ॥ पकधान्यनिचयास्तरणाद्यैः । स्वेदयेत्कुरुत बस्तिविधानम् ॥ ८॥
भावार्थ:-सर्वदेहमें व्याप्त वा हो तो बात रोग को उपशमन करनेवाले औषधियोंसे सिद्ध काढे में रोगी को अवगाहन, ( बैठालना ) व पके हुए धान्यसमूह के ऊपर सुलाना आदि क्रियायोंके द्वारा स्वेदन कराना चाहिये । फिर बस्तिप्रपोग करना चाहिये ॥८॥
स्तब्धादिवातचिकित्सा । __ स्तब्धदेहमिद्द कुंचितगात्रं । गाढबंधयुतमाचरणीयम् ।।
संघजत्रुगलवलास वातं । नस्यमाशुशमयेद्वानं च ॥ ९ ॥ १-२ इन दोनोंका खुलासा ऊष्मद्रवस्वेद में किया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org