________________
महामयाधिकारः।
(२२९)
उत्पन्न शास्त्रसमुद्रसे निकली हुई बूंदके समान यह शास्त्र है । साथ में जगतका एक मात्र हितसावक है [ इसलिए ही इसका नाम कल्याणकारक है ] ॥ १८० ।।
इत्युग्रादित्याचार्यकृत कल्याणकारके चिकित्साधिकारे महाव्याधिचिकित्सितं नामादितो एकादशमः परिच्छेदः ।
इत्युप्रादित्याचार्यकृत कल्याणकारक ग्रंथ के चिकित्साधिकार में विद्यावाचस्पतीत्युपाविधिभूषित वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री द्वारा लिखित
भावार्थदीपिका टीका में महारोगाधिकार नामक
ग्यारहवां परिच्छेद समाप्त हुआ।
सय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org