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________________ (२२५.) कल्याणकारके भावार्थ:- यवक्षार हींग व सोंठसे युक्त मंदोष्ण दूधको पनेिसे अथवा हरउके साथ गुडको प्रतिनित्य प्रयत्नपूर्वक सेवन करनेसे उदरमहारोग नाश होता है ॥१५६॥ स्नुहीपयोभावितजातपिप्पली । - सहस्त्रमेवाश जयेन्महोदरम् ॥ हरीतकीचूर्णचतुर्गुणं घृतं निहंति तप्तं माथितं भुविस्थितं ॥ १५७ ॥ भावार्थ:-थोहरके दूधसे भावित हजार पीपलके सेवनसे उदर महारोग शीघ्र नाश होता है। इसी प्रकार हरडेके चूर्णको चतुर्गुण तक्रमें डालकर गरम करके जमीनमें गाढे | पंद्रह दिन या एक मासके बाद निकाल कर पायें तो सर्व उदररोग नाश होता है ॥ १५७ ॥ नाराच घृत । महातरुक्षीरचतुर्गुणं गवां । पयो विपाच्य प्रतितक्रसंधितं ।। खजेन मंथा नवनीतमुध्दृतं । पुनर्विपकं पयसा महातरोः ॥ १५८ ।। तदर्धमासं वरमासमेव वा । पिबेच्च नाराचघृतं कृतोत्तमं ॥ महामयानामिदमेव साधनं । विरेचनद्रव्यकषायसाधितम् ॥ १५९ ॥ भावार्थ:-थोहरके दूधके साथ चतुर्गुण गायका दूध मिलाकर फिर तपाव तदनंतर छाछके संयोगसे उस दूधको जमावे जब वह दही हो जाये तब उसे मथनकर लोणी निकालें उस लोणीमें पुन थोहाके दूध मिलाकर पकाये । इसे नाराच घृत कहते हैं । यह सर्व घृतो श्रेष्ट है । उसे १५ दिन या एक मास तक पायें । जिससे (विरेचन होकर ) सेग दूर होता है । कुष्ठ, उदर आदि महारोगोंके नाशार्थ यही एक उत्तम साधन है। एवं विरेचन द्रव्योंसे साधित अन्य घृत भी ऐसे रोगोंके लिये हिसकर है॥ १५८ ॥ १५९ ॥ महानाराच घृ । त्रिकृत्सदंती त्रिफला सशंखिनी । कषायभागर्नुपवृक्षसत्फलैः ॥ महावाक्षारयुबैस्सचित्रकै- । विडंगयष्पक्षणदा कटुत्रिकैः ॥ १६० ।। पचरसनाचघृतं महाख्यं । महोदराष्टीलकनिष्ठकुष्ठिनाम् । सल्मिकापहमणोद्धतोन्मद- । प्रलापिनां श्रेष्ठविधं विरेचनम् ॥ १६१ ॥ भावार्थ:-जमालगोटेकी जड, त्रिफला, शंखिनी ( यवतिक्ता, चारपुष्णी, पुन्नागवृक्ष. ) इन के कषाय, थोहर का दूध, और अमलतास का गूदा, चीता की जड वाय. विडंग, वश्य, हलदी, खोंठ, मिरच, पीपल, इन के कल्क से घृत सिद्ध करना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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