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कल्याणकारके भावार्थ:-पित्ताद्रेकसे उत्पन्न महोदरीको अच्छे व विशेषरस पसे शीत औषधियोंसें अन्छीतरह सिद्ध किया हुआ वृत पिलाकर एवं निशोथ व शकर मिलाकर उसे विरेचन कराना चाहिए ।। १४६॥
..... पेसिकोदर में निरूह बस्ति । . सशर्करा क्षीरघृतप्रगाहे- । बनस्पतिकाथगणस्सुखोष्णैः ।। निरहणः पित्तकृतोदराते । निरूहयेदौषधसंप्रयुक्तः ॥ १४७ ॥
भावार्थ:-पित्तज महोदरीको जिसमें शक्कर, दूध व घी अधिक हो ऐसे मंदोष्ण निरूहण वनस्पतिके क्वाथसे निरूह बरित देनी चाहिए ॥ १४७ ॥
घृत प्रलिप्तं सुविशुद्धकोष्ठं । सपत्रबद्ध कुरु पायसेन ॥ सुखोष्णदुग्धाधिकभोमनानि । विधीयतां तस्य सतिक्तशाकैः ॥१४८॥
भारार्थ:-कोष्ठ शुद्ध होने के बाद उस के पेटके ऊपर घी लगाकर दूधसे सिद्ध पुटिश बांधनी चाहिए जिस के ऊपर पत्ते बांधने चाहिए। और उसे जिसमें दूध अधिक हो एवं कडुवी तरकारियों से युक्त हो ऐसा भोजन कराना चाहिए ॥ १४८ ॥
. कफोदर। कफोदरं तिक्तकषायरूक्ष- । कटुत्रिकक्षारगणप्रपकैः। घृतस्सतैलैस्समाहितं त- । द्विरेचयेद्वज्रपयः प्रसिद्धैः ॥ १४९ ॥
भावार्थ:-कफोदरीको कडुआ, कषाय रस, रूक्ष औषध त्रिकटु व क्षारसमूह के द्वारा पक घृत तेल से स्नेहन कगकर थोहरके दूधसे विरेचन करना चाहिये ॥१४९॥
गांबुगोक्षारकदुत्रिकाद्यैः। फलत्रयकाथगणैस्सतिक्तैः । निरूहभैषज्ययुतस्सुखोगै- । निरूहयेत्तैरुपनाहयेच्च ॥ १५० ॥
भावार्थ:-गोमूत्र, गायका दूध, त्रिकटु आदि कफनाशक औषध, त्रिफला और निरूहणकारक अन्य औषध इनके सुखोपण कषाय से निरूह बत्ति देनी चाहिए एवं पूर्वोक्त प्रकार कफनाशक पुल्टिश बांधनी चाहिए ॥ १५० ॥
सदैव शोभोजनकाईकाणां । रसेन संपकपयः प्लवान्नम् ॥ कषायतितातिकटुप्रकार-। स्सुशाकवगैस्सह भोजयेत्तम् ॥ १५१ ॥
भावार्थः-उसको सदा सेंजन व अदरख के रस से पक दूधसे युक्त अन्न व कषाय, सीखे, अति कडुए रस से युक्त तरकारियोंसे भोजन कराना चाहिये ॥११॥
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