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महामयाधिकारः।
(२११)
लेपद्वय । आलेपयेत्सैंधवशक्रमर्द- । कुष्टाग्निकत्रिकर्डकैः पशुमूत्रपिष्टैः ।
सद्धाकुचीसैंधवभूशिरीप- कुष्टाश्चमारकटुकत्रिकचित्रका ॥ २४ ॥ .. भावार्थ:---सेंधानमक, चकमोद [चकोंदा] कूट, चित्रक, त्रिकटुक इनको गोमूत्रके साय पीसकर लपन करना चाहिये । अथवा बावची, सैंधानमक, भूसिरस, कूट, करनेर, सोंठ, मिरच, पीपल व चित्रक इनको गोमूत्रामें पीसकर लेपन करना चाहिये ॥ ९४ ॥
सिद्धार्थादिलेप। सिद्धार्थः सर्षपसैंधवान - कुष्टार्कदुग्धसहितैस्समनश्शिलालैः । चूर्णीकृतैस्तीक्ष्णसुधाविमित्रै - रालेपयेदसितमुष्ककभरमयुक्तैः ॥ ९५ ॥
भावार्थ:-सफेद सरसी, सरसौ, मैंधा नमक, वचा, कूट, मेनशिला, हरसाल, तीवणविष ( वत्सनाभ आदि ) इनको चूर्णकर इसमें काला भोग्वा वृक्षका भस्म व अकौवाके दूध मिलाकर, कुष्ठ रोगमें लेपन करना चाहिये ॥ १५ ॥ श्चित्रष्वपि प्रोक्तमहापलेपा । योज्या भवंति बहुलोक्तचिकित्सितं च । अन्यत्सवर्णस्य निमित्तभूत - मालेपनं प्रतिविधानमिहोच्यतेऽत्र ॥१६॥
भावार्थ:-श्वेतकुष्ठमें भी उपर्युक्त लेपन व चिकित्सा करनी चाहिये। अब धर्मको सवर्ण बनानेकेलिये निमित्तभूत लेपन सवर्णकरण योगोंको कहेंगे ॥९॥
भल्लातकास्थ्यादलेप। भल्लातकास्थ्यग्निकबिल्वपेशी। शृंगार्कदुग्धहरितालमनश्शिलाश्च ॥ द्वैष्यं तथा चर्म गजाजिनं वा । दग्ध्वा विचूर्ण्य तिलतैलयुतः प्रलेपः।।१७।
भावार्थ:--भिलावेका बीज, चित्रक, बेलकी मज्जा, भांगरा, अकौवेका दूध, रताल, मेनशिला इनको अथवा चीता व्याघ्र गज व मृग इनके चर्मको जलाकर चूर्ण करके तिलके तेलमें मिलाकर लेपन करें ॥ ९७ ॥
भल्लातकादिलेप। . भल्लातकाक्षामलकामयार्क - दुग्धं तिलास्त्रिकटुकं क्रिमिहापमार्ग ॥ कांजीरधामार्गवतिक्ततुंबी । निवास्थिदग्धनिह तैलयुतः प्रलेपः ।।९८॥
भावार्थ:--मिलावा, बहेडा, आंवला, हरड, अकौवेका दूध, तिल, त्रिष्टुक, वायुविडंग, लट जीरा, कांजीर, कडवी तोरई, कटुतुंबी, नीमका बीज इनको जलाकर सिलतैलभिनजर लेपन करना चाहिये ॥ १८ ॥
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