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________________ ( १९२) कल्याणकारके महामय वर्णनक्रम । महामयानामखिलां क्रियां ब्रुवे । यथाक्रमाल्लक्षणतचिकित्सितः । असाध्यसाध्यादिकरोगसंभवप्रधानसत्कारणवारणादिभिः ॥५॥ भावार्थ -- उन महारोगोंकी संपूर्ण चिकित्सा, कमसे लक्षण, साध्यासाध्य विचार रोगोत्पत्ति के प्रधान कारण, रोगोत्पत्ति से रोकने के उपाय, आदियोंके साथ निरूपण करेंगे ॥ ५ ॥ अथ प्रमहाधिकारः । - प्रमेह निदान । गुरुद्रवस्निग्धहिमातिभोजन । दिवातिनिद्रालुतया श्रमालसं ॥. नरं प्रमेहो हि भविष्यतीरितं । विनिर्दिशेदाशु विशेषलक्षणः ॥ ६ ॥ भावार्थ:--गुरु, द्रव्य, स्निग्ध, व ठंडा भोजन अधिक करनेसे, दिनमें अधिक निद्रा लेनेसे, श्रम न करने से, आलस्य करनेसे प्रमेह रोग उत्पन्न होता है। लक्षणोंके प्रकट होनेपर उन्हे देखकर प्रमेह रोग है ऐसा निश्चय करना चाहिये ॥ ६ ॥ . प्रमेहका पूर्वरूप। स्वपाणिपादांगविदाहता तृषा । शरीरसुस्निग्धतयातिचिकणम् ।। मुखातिमाधुर्यमिहातिभोजनम् । प्रमेहरूपाणि भवंति पूर्वतः ॥ ७ ॥ भावार्थ:-अपने हाथ पैर व अंग में दाह उत्पन्न होना, अधिक प्यास लगना, शरीर स्निग्ध व अतिचिकना होना, मुग्व अत्यंत मीठा होना, अधिक भोजन करना, यह सब प्रमेह रोगके पूर्वरूप हैं ॥ ७ ॥ प्रमेहकी संप्राप्ति. अथ प्रवृत्ताः कफपित्तमारुतास्समदसो बस्तिगताः प्रपाकिनः ॥ प्रमेहरोगान् जनयंन्त्यथाविल- । प्रभूतमूत्रं बहुशस्वीत ते ॥ ८॥ भावार्थ:--प्रकुपित कफ पित्त व वात गेहके साथ २ बस्ति में जाकर जब परिपाक होते हैं तब प्रमेह रोगको उत्पन्न करते हैं। इससे गंदला मत्र अधिक प्रमाण से निकलने लगता है यही प्रमेह का मुख्य लक्षण है ॥ ८ ॥ प्रमेह विविध है। इह प्रमहा विविधा स्त्रिदोषजा- स्स्वदोषभेदात् गुणमुख्यभावतः ॥ ते एव सर्वे निजदुर्जया मताः । नटा इवानेकरसस्वभाविनः ॥ ९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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