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________________ (१८४ ) कल्याणकारके साथ सेवन करने से सर्व कफ रोगोंको दूर करते हैं । एवं अत्यंत कठिन साध्य बहुमूत्र रोगको भी उपशमन करते हैं ॥ ८ ॥ हिंग्वादि चूर्णत्रय । हिंग्वेला जाजिचव्यत्रिकुटकयवजक्षारसौवर्चलं वा । मुस्तायोषा जमादामलकलवणपाठाभयाचित्रकं वा ॥ शिग्रु ग्रंथ्यक्षपथ्यामरिचमगधजानागरैला विडंगे। चूर्णीकृत्योष्णतोयैर्धृतयुतमथवा पीतमेतत्कफघ्नम् ॥९॥ अथवा भावार्थ: -- हींग, इलायची, जीरा, चात्र, त्रिकटुक, यवक्षार, कालानमक, अथवा नागरमोथा, त्रिकुटु, अजवाईन, आंवला, वालवण, पाठा, हरड, चित्रक, सेंजन, पीपलीमूल, बहेडा, हरड, मिरच पीपलो, सोंठ, इलायची, वायुविडंग, इनको चूर्ण करके गरम पानी या घृत में मिलाकर पीनेसे कफको नाश करता है ।। ९ ॥ बिल्वादिलेप | बिल्वाग्निग्नथिकांताकुलहलकुनटी शिमूलाग्निर्मथा- | नर्कालकग्रगंधात्रिकटुकरजनी सर्षपोष्णीकरंजान् ॥ कल्कीकृत्य प्रदेहः प्रबलकफमरुज्जातशेोफानशेषा - । निर्मूल नाशयेत्तान दवदहन इवामेयतार्णो रुराशीन् ॥ १० ॥ भावार्थ: बेल, चित्रक, पीपलीमूल, रेणु वजि, महाश्रावणी, गोरखमुण्डी, मनःशिला, सेंजनकाजड, अगेधु, अकौवा, सफेद अकौबा, वचा, त्रिकटु, हलदी, सरसौ, प्याज, करंज इनका कल्क बना कर उसे लेपन करें जिससे प्रबल कफ व वातसे उत्पन्न हरतरह की सूजन दूर होजाती हैं । बडे भारी तृणराशी को जिस प्रकार दावानल नाश करदेती है उसी प्रकार उक्त कल्क समस्त वातज और कफज रोगोंको दूर करता है ॥ १० ॥ I शिवादि लेप | शिग्रुव्याघातकाग्नित्रिकटुकहयमाराश्वगंधा जगधैः । aaf चक्रमर्दाल कलवणसद्भाकुची भूशिरीषैः ॥ क्षारांबुक्षीरतकै लवणजलयुतः लक्ष्णपिसमांशै । त्यलेपनार्थं क्षपयाति फिटवान् दककच्छनशेषान् ॥ ११ ॥ भावार्थ:-- सेंजन, करंज, चित्रक, त्रिकटुक, अश्वमार ( करनेर) अश्वगंध, रामतुलसी इनको, अथवा चकोंदा, आंवला सैंधानमक, बाकुची भूशिरीष इनको समांश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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