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कफरोगाधिकारः G1
( १८३ )
पीत्वा सौवीरमिश्रं क्षपयति यकृदष्टीलगल्माग्निमांद्यं । कासोश्वासशूलाम जठरकुक्ष्यामया शप्लहादीन् ॥ तक्रेण श्लेष्मरोगान् घृतगुडपयसा पैत्तिकान् हंत्यशेषा - । नुष्णभस्तैलयुक्तं शमयति सहसा वातजातानमोघम् ॥ ६ ॥ भावार्थ:- भार्डी, हिंग, बचा, मिरच, बिडनमक, यवक्षार, कालानमक, इलायची, कूट, सोंठ, पाठा, कुटज फल ( इंद्रजौ ) महानिंत्र ( चकायन ) का बीज, अजवाईन, चात्र, जीरा, सोंफ, चित्रक, गजपीपल, पीपल, सैंधानमक इनको चूर्ण करके आम्लवर्ग के औषधियोंके रसोंसे इसमें अनेकवार भावना देकर कांजी मिलाकर पीयें जिससे यकृदुदर, अष्टीलिका गुल्म, अग्निमांध खांसी, ऊर्भश्वान, शूल, वमन उदर रोग. कुक्षिरोग [ संग्रहणी अतिसार आदि ] प्लिहोदर, आदि रोग दूर होते हैं । तथा इस चूर्ण को छाछ में मिलाकर पीत्रे तो समस्त लेप्मरोग, घृतगुड व दूधमें मिलाकर पीवे तो सर्व पित्तज रोग, एवं गरमपानी व तेल में मिलाकर पीचे तो बातज रोग उपशमन होते हैं । ॥ ६ ॥
कफनाशक व खदिरादि चूर्ण |
निवकार्थं सुखोष्णं त्रिकटुकसहितं यः प्रपाय प्रभूतं । छर्दि कृत्वा समांशं खदिरकुटजपाठापटोलानिशानाम् || चूर्ण व्योषगढं प्रतिदिनमहिमेनांभसातत्पिवन्सः । कुष्ठाशः कीटकच्छ्रन् शमयति कफसंभूतमातंकजातम् ॥ ७ ॥ भावार्थ - त्रिकटुकसे युक्त नीमके कषाय को थोडा गरम पिलाकर वमन करान "चाहिये । तदनंतर खैर, कुटज, पाठा, पटोलपत्र, हलदी, त्रिकटु इनके समांश चूर्णको गरम पानी के साथ प्रतिदिन पिलानेसे कुष्ट, बवासीर, कीटकरोग, कछुरोग, एवं कफोत्थ सर्व रोगोंकी उपशांति होती है ॥ ७ ॥
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दोषादि चूर्णचतुष्क
व्योषं वा मातुलुंगोद्भवरससहित संघवाव्यं समांश । क्षारं वा मुष्कभस्मोदकपरिगलितं पकमारक्तचूर्ण ॥ चूर्ण गोमूत्रपीतं समधृतमसस्त्रैफलं मार्कवं वा । श्लेष्मव्याधीनशेषान् क्षपयति बहुमूत्रामयानप्रमेयान् ॥ ८ ॥
भावार्थ:-- माहुरंग के रस सहित सैंधानमक, त्रिकुट के समाश चूर्ण. मुष्कवृके [ मोखावृक्ष ] लालवर्ण का क्षार, व समांश त्रिफला व भृंगराज चूर्ण गोमूत्र के
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