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________________ ( १८२ ) कल्याणकारके तीव्रस्वेदोपवासैस्तिलजपरिगतोन्मदनादिव्यवायैः । श्लेष्मोद्रेकमशांतिं व्रजति कटुतिक्तातिरूक्षैः कषायैः ॥ ३ ॥ भावार्थ:- क्षारपदार्थ, उष्ण पदार्थों के वर्ग, लघु व विशद ( स्वच्छ ) अल्पप्रमाण में अन्नपान का सेवन, कुलथी व मूंगका यूष, कटुक रस युक्त मटर वं अरहरका पानी ( पेया आदि ) तीव्र स्वेदन, उपवास, तिल तैलसे मर्दन, मैथुन सेवन, एवं कडुवा, चरपरा, कषायरस, रुक्षपदार्थ इत्यादि से कफविकार ( कफप्रकोप ) शांतिको प्राप्त होता है | ॥ ३ ॥ कफनाशक उपाय । गण्डूपैस्सर्षपाद्यैर्लवणकटुकषायातितिक्तोष्णतीयैः । निर्वैः कारंजकाद्यैस्त्रिकटुकलवणोन्मिश्रितैर्दतकाष्ठैः ॥ नारंगैर्वेत्रजातैश्णकविलुलितमीतु लुगाम्लवगैः । सव्योषैस्सैंधवाद्यैः कफशमनमवाप्नोति मर्त्यः प्रयोगैः ॥ ४ ॥ भावार्थ:- सरसों आदि कफनाशक औषधियों के तथा लवण, चरपरा, कषाय, कडुआ रस, गरम पानी, इत्यादि औषधियों के गण्डूष धारण करने से नीम करंज बबूल आदि कडुआ, चरपरा, कषायरस दांतोन, व सोठं मिरच, पपिल नम-.. क मिश्रित दंतमंजन द्वारा देतवाचन करने से, निंबू, वेत के कोंपल, चने का क्षार, बिजोरी निनूं, जम्बीरी निंबू, तितिडीक आदि अम्लवर्मोक्त पदार्थ एवं त्रिकटू सेंधानमक, कालानमक, सामुइनमक, विंडनमक, व औद्भिद (ऊपर) नमक इनके प्रयोग से कफ शमन होता है ॥ ४ ॥ P भार्यादि चूर्ण | भाङहिंगूग्र गंधामरिचविडयवक्षारसौवर्चलैलाः । कुष्टं शुंठी पाठा कुटजफलम हानिंबबीजा जमोदाः ॥ चव्वाजा जीशता हा दहनगजकगापिप्पली ग्रंथिसिंधून् । चूर्णीकृत्याम्लवर्गेलुळितमसकृदाशोषितं चूर्णितं तत् ॥ ५ ॥ १. अम्लवर्गः– अम्लवेतस जम्बीरलुङ्गाम्ललवणाम्लकाः नगरंगं तितिडीच चिंचा..... फलसनिम्बुकं । चागेरी दा डेमं चैव करमर्द तथैव च । एष चाम्लगणः प्रोक्तो वेतसाम्लसमायुतः ॥ रसेद्रसारसंग्रह | अम्लवेत, जम्बारीनिंबू बिजौरा निंबू, चनेका खार नारंगी तिंतिडीक, इमली के फल - निंबू, चांगेरी, ( चुक्का ) खट्टा अनार और कमरख इन को अम्लवर्ग कहा है । Jain Education International २ औषधियों के कषाय को तबतक मुख में भरकर रखें जबतक कफादि दोष निकम व उमष कहते हैं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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