________________
कफरोगाधिकारः
अथ दशमः परिच्छेदः
Jain Education International
कफरोगाधिकारः ! ष्मरोगाभिधानप्रतिज्ञा ।
मंगलाचरण :
जीवाजीवाद्यशेषं विधिवदभिहितं येन तद्भेदभिन्नं । धौव्योत्पादव्ययात्मामकटपरिणतिप्राप्तमेतत्क्षणेस्मिन् ॥ तं देवेंद्राभिवंद्य जिनपतिमजितं प्राप्तसत्मातिहार्य | नवा श्लेष्मामयानामनुगतमखिलं संविधास्ये विधानम् ॥ १ ॥ भावार्थ:- जिसने अपने २ भेदोंसे भिन्न तथा ( अपने स्वभावमें स्थित होते हुए भी) परिणति को प्राप्त उत्पाद, व्यय, धौग्योंसे युक्त जीवादि द्रव्योंको विधिप्रकार निरूपण किया है और जो देवेंद्रादियों के द्वारा पूज्य है, अष्टमहाप्रातिहार्यौकर युक्त 蓮 ऐसे श्री अजितनाथ जिनेंद्रको बदनाकर कफरोगों के विषय में निरूपण करेंगे इस प्रकार आचार्य प्रतिज्ञा करते हैं ॥ १ ॥
( १८१ )
प्रकुपितकफका लक्षण
स्तब्धं शैत्यं महत्त्वं गुरुतरकठिनत्वातिशतिर्तकडू- । स्नेहक्लेदप्रकाश चैवमधुशिरोगौरवात्यंतनिद्राः ॥ मंदाग्नित्वाचिपाक मुखगतलवणस्वादुता सुप्ततादिः ॥ श्लेष्म व्याधिस्वरूपाण्यविकलमधिगम्याचरेदौषधानि ॥ २ ॥
भावार्थ:-- शरीरका स्तब्ध होना, ठण्डा पडजाना, फूलजाना, भारी होजाना, कठिन, अतिशीत, अतिकंडू [ खाज ] चिकना, गीला होजाना, थूकका पडना, अम्मादिकमें अरुचि, शिरोगुरुता, अत्यधिक निद्रा, मंदाग्नित्व, अपचन, मुख नमकीन वा स्वादु हो जाना, अंगोंमें स्पर्शज्ञानका नाश हो जाना, यह सब कफप्रकोप का लक्षण हैं । ये लक्षण जिन २ व्याधियों में पायें जाते हैं उनको कफजव्याधि समझना चाहिये । इन लक्षणों को अच्छी तरह जानकर कुशल वैद्य तद्योग्य औषधियोंके द्वारा उपचार करें ॥ २ ॥
श्लेष्म नाशक गण ।
सक्षाररुष्णवगैर्लघुतरविशदैरल्पमात्रान्नपानैः । कौस्यैरतिमदुकानांच
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org