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________________ कफरोगाधिकारः। __(१८५) लेकर क्षारजल या दृध या छाछ, लवणजलके साथ पीसकर महीन लेपन करें तो किटिभ कुष्ठ, दद्रु, कच्छू आदि अनेक कुष्ठविशेष दूर होते हैं, ॥ ११ ॥ धान्यादि लेप | धान्यक्षाहाभयाख्या त्रिकटुकरजनीचक्रमाद्रिकर्णी । निंबव्याघातकाग्निद्रुमलवणगणैः कांजिकातक्रपिष्टैः ॥ गाढामावर्तनालेपनयुतविधिना दद्रुकंडूकिलास-। प्रोसिध्मात्युग्रकच्छ्न् शमयति सहसा श्लेष्मरोगानशेषान् ॥१२॥ भावार्थः--आंवला, बहेडा, हरड, त्रिकटु, हलदी, चकोंदा, कोइल, नीम करं भिलावा, पांचो लवण, इनको कांजी व छाछमें पीसकर अवलेपन करनेसे दद्र, कंडू, किलास सिध्मारोग, उग्रकच्छू आदि अनेक श्लेष्म रोग उपशम होते है ॥ १२ ॥ धूमपानकवलधारणादि। धूमै; ग्रंथिहिंगुत्रिकटुककुनटीभव्यभामनिशानां । कल्केनालिप्तसूक्ष्मांवरवृतबृहदेरण्डवृतांतदत्तैः ॥ सिद्धार्थस्सर्षपादैयमरिचमगधजानागरश्शिमलैः । श्लष्मोद्रेकप्रशांतिं ब्रजति कवलगडूपसेकालेपैः ॥ १३ ॥ भावार्थः----पोपलामूल, हींग, त्रिकटु, धनिया, कभरख, भाङ्गी, हलदी, इन के कल्कको पताले वस्त्र पर लेप करके, उस कपडे के वीचमें एक, एरण्डका डंटल रख कर उसको लपेट लेवें । इस वत्तीमें आग लगाकर, इसका धूमपान करनेसे, तथा सफैद सरसों, सरसों, कालीमिरच, पीपल, सोंठ सेजनका जड इनके कवलधारण, गण्डूष, सेक, और लेपसे, कफप्रकोपका शमन होता है ॥ १३ ॥ एलादि चूर्ण एलात्वकागपुष्पोषणकमगधजानागरं भागवृध्या । संख्यातश्च्चूर्णित तत्समसितसहितं श्रेष्टमिष्टं कफघ्नम् ॥ पित्तामृपांडुरोगक्षयमदगुदजारोचकाजीर्णगुल्म-। ग्रंथिश्वासोरुहिक्काज्वरजठरमहाकासहृद्रोगनाशं ।। १४ ॥ भावार्थः ---इलायची एकभाग, दालचीनी दो भाग, नागकेसर तीन भाग, पीपल चार भाग मिरच पांच भाग, सोंठ छह भाग, इनको इस क्रमसे लेकर चूर्णकर सबक बराबर उसमें शक्कर मिलावें । इस चूर्ण के सेवनसे कफ रोग दूर होता है तथा पित्तरक्त, पांडुरोग, मद, क्षय, अरुचि, अजर्णि, खांसी, हृदयरोग को यह चूर्ण नाश करता है। अतएव यह श्रेष्ट है ॥ १४ ॥ २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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