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________________ ( १७६ ) कल्याणकारके भावार्थ::- वात पित्त कफ इन तीनों अतिसारोंके लक्षणोंसे युक्त, छिन्न २ स्वच्छ, कण सहित व कणरहित मल निकलता है इसे सन्निपातातिसार कहते हैं । मल पानी में डालने पर डूबे, दुर्गंध से युक्त हो तो उसे आमातिसार कहते हैं । इससे विपरीत दक्षण वाले को पक्वातिसार कहते हैं ॥ ८७ ॥ अतिसार का असाध्य लक्षण | शोकादतिप्रबलशोणितमिश्रमुष्ण- । माध्मानशुलसहितं मलमुत्सृजतम् ॥ तृष्णाद्युपद्रवसमेतमरोचकार्तम् । कुक्ष्यामयः क्षपयति क्षपितस्वरं वा ॥ ८८ ॥ भावार्थ:- अति शोक के कारण से उत्पन्न, अत्यधिक रक्तमिश्रित, अतिउष्ण, मल को निकालने वाला शोकातिसार, आध्मान अफरा ) व शूलयुक्त, तृष्णा, सूजन, उर, श्वास, खांसी आदि उपद्रवों से, संयुक्त, अरुचि से पीडित, हीन स्वर संयुक्त रोगी को, [ अतिसार रोग ] नाश करता है | ॥ ८८ ॥ अन्य असाध्य लक्षण । बालातिवृद्धकृशदुर्बलशोषिणां च । कृछ्रातिसार इति तं परिवर्जयेत ॥ सर्पिः प्लिहामधुवसायकृतासमानं । तैलबुदुग्धदधितसमं सर्वतम् ॥ ८९ ॥ भावार्थ:- अतिसार रोगी अति बालक हो, अति वृद्ध हो, कृश, दुर्बल व शोषी [ क्षयरोग से पीडित ] हो, एवं जिनका मल घी, प्लिहा, वसा, यकृत, तेल, पानी, दूध, दही, छाछ के समान वर्णवाला हो, ऐसे रोगियोंका अतिसार महान् कष्ट पूर्ण है । इसलिए उसे छोडना चाहिए । Jain Education International आमातिसार में वमन । ज्ञात्वामपक्कमखिलामय संविधानं । सम्यग्विधेयमधिकामयुतातिसारे ॥ प्रच्छर्दनं मदनसंधव पिप्पलीनां । कल्कान्वितोष्णजलपानत एव कुर्यात् ॥ १० ॥ भावार्थ - अतिसारोंके आमपक्कावस्थावोंको अच्छी तरह जानकर यथायोग्य ( आम में पाचन व पक्कस्तंभन ) चिकित्सा करनी चाहिये । अधिक आमयुक्त हो तो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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