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पित्तरोगाधिकारः।
(१७४)
मेनफल, सैंधानमक, पीपल इनके कल्कसे मिश्रित उष्णजलपानसे वमन कराना चाहिये । ॥९ ॥
वमनपश्चाक्रिया वतिं प्रशांतमददाहमपेतदोषं ।
तिं नदाहनि विवर्जितभुक्तपानं ।। मांग्राहिकोषधविपकविलेप्यवृष-।
भन्येधुरल्पमहिमं वितरेद्यथोक्तम् ॥ ११ ॥ भावार्थ:-~-वमन कराने के बाद, जिसका मद, दाह व दोष शांत होगये हों, जो थका हो ऐसे रोगीको उस दिन खाने पीने को कुछ नहीं देना चाहिये । दूसरे दिन प्राहि औषधियोंसे पकाये हुए विलेपी वा यूष (दाल) गरम व अल्पप्रमाण में देना चाहिये । ॥ ९१॥
वातातिसार में आमावस्था की चिकित्सा.
अत्यम्लतक्रमनिलामयुतातिसारे । प्रातः पिबेन्मरिचसैन्धवनागराढ्यं ।। हिंगुप्रगाढमथवा मरिचाजमोद ।
सिन्धूत्थनागरविपकवराम्लिका वा ॥९२॥ भावर्थ-~-वातज अतिसारके आमास्थामें अत्यंत ग्वट्टी छाछमें मिरच, सैंधानमक सोंठ, हींग मिलाकर अथवा मिरच, अजवाईन, सैंधानमक, सोंठ, इनसे पकायी हुई कांजी पीना चाहिये ॥ ९२ ॥
पित्तातिसार में आमावस्था की चिकित्सा । यष्टीकषायपरिपकमजापयो वा। जम्बंबुदाम्रकुटजातिविषाकषायः ॥ पतिस्तथा दधिरसेन तिलांबुकल्कं ।
पित्ताममाशु शमयत्यतिसाररोगे ॥ ९३ ।।। भावार्थ:-पित्तज अतिसारके आम अवस्थामें मुलैठीके कवायसे सिद्ध किया हुआ बकरी का दूध व जामुन, नागरमोथा. आम, कूटज, अतीस, इनका कषाय अथवा तिल व नेत्रबालेका कल्कको दहीके तोड [ रस ] के साथ पीना चाहिये ।। ९३ ॥
कफातिसार में आमावस्था की चिकित्सा ।
दीनिशात्रिककांबुदचित्रकाणां। . पाठाजमोदमारिचामलकाभयानाम् ।।
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