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________________ पित्तरोगाधिकारः। Pr रूक्ष सृजत्यतिमुहर्महरल्पमल्पा । वातातिसार इति तं मुनयो वदति ।। ८४ ॥ भावार्थ:-जिसमें अपानवायु के प्रकोपसे, मल अत्यंत गाढा, रुक्ष एवं फेल युक्त होता हुआ बार २ थोडा २ पीडा व साद्ध के साथ २ उतरता है, रोगी शूलसंयुक्त होता है । उसको महर्षिगण बातातिसार कहते हैं। तात्पर्य यह कि ये सब लक्षण वातातिसार के हैं ॥ ८४ ॥ - पिचातिसार लक्षण पीत सरक्तमहिम इरित सदाह । मूतिषावरविषाकपद रुपेतम् ।। शीघ्र सृजत्यतिविभिन्नपुरीषलछ । पित्तातिसार इति न मुनयो वदति ॥ ८५ ।। भावार्थ:--पीला हरावण से युक्त, अधिक उष्ण, रक्तसहित स्वच्छ व पतला मल शीघ्र उतरना, रोगी मूर्छा, प्यास, ज्वर, अपचन, मद, इन से युक्त होना, ये सब लक्षण पित्तातिसार के है, ऐसा आचार्यप्रवर कहते हैं ॥ ८५ ॥ लष्मातिसार श्वेतं बलासबहुतो बहुलं मुशीत । शीतार्दितातिगुरुशीतलगात्रयष्टिः ।। कृत्स्नं मलं सजति मंदमनल्पमल्पं । श्लेष्मातिसार इति तं भुनयो वदंति ॥ ८६ ॥ भावार्थ:-कफ के आधिक्य से, मल का वर्ण श्वेत, गाढा, व अधिक ठण्डा होता है और मंदवेग के साथ, अधिकमात्रा में मल निकलता है, रोगी अत्यंत शीत से पीडित होता है, शरीर भारी, व अति शीतल मालूम पडता है जिसमें ये सब लक्षण प्रकट होते हैं उसे महर्षिगण श्लेष्मातिसार कहते हैं ॥ ८६ ॥ सन्निपातातिसार, आमातिसार व पवातिसारका लक्षण । सर्वात्मकं सकलदोपविशेषयुक्तम् । विच्छन्नमच्छमतिसिस्थमासिवथक वा ।। दुगेधमप्स्वपि निमग्नयमेध्यमामं । पक्कातिसारमति नविपरीतमाहु: ।। ८७ ।। da Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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