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(१६६)
कल्याणकारक
आध्मानशलमललोचन कृष्णताति- । श्वासोरुकासीवपमाष्मककंयनानि ।। ५३ ॥ स्तब्धातिसुप्ततनुतातिहिमाप्रियत्वः । निद्राक्षति वसनसंभवलक्षणानि ।। बातज्वरे सततमेव भवति तानि ।।
ज्ञात्वानिलनमचिराहिचरेयधोक्तम् ॥ ५४ ।। भावार्थः -हृदय, पार शरीर व शिरमें अत्यधिक दर्द होना, मलावरोध शरारमें रूक्षपना होजाना, विरसाय, जंभाई, आमानः ( चपंग ) मल ब आंख आदि काला हो जाना व श्वास खासी होना, घरका विएम बंग, व कंपन होना, शरीरका जकडाहट, शरीरके स्पर्शाज्ञान होना, टण्डे पदार्थ अप्रिय लगना, निद्रानाश होना, ये सब वातज्वरके लक्षण हैं उनको जानकर बातविकार को दूर करनेवाली चिकित्सा शाब करनी चाहिये ॥ ५३ ॥ ५४ ।।
वित्तज्वरलक्षण। तृष्णाप्रलापमददाहमहोष्मतातिमूभियाननकटुत्वविमोहनानि ।। नाखास्यणाकरुधिरावितपित्तमिश्र- । निष्ठीवनातिशिशिरनियतातिरोषः ॥ ५५ ॥ विड्गपाताल अमिलो धनालिप्रस्वेदनप्रचुररक्तमहालिसाराः ॥ -: निश्वासपूतिरिति पितलक्षणानि ।
पित्तज्वरों, प्रतिदिमः प्रभवति तानि ॥ ५६ ॥ भावार्थ:-- वृषा, अकवाद, मद, जलनः जरका तीवेग, मूर्छा, भ्रम, मुख कडुवा होना, वेचैनी होना, नाक व सुका पक जाता, थूकमें रक्त पित्त मिलकर आजाना, ठण्डे पदार्थोंमें अत्यधिक इच्छा, अतिक्रोध, अतिसार, मल मूत्र क नेत्र पीला होजाना, विशेष पसीना आना, रक्तातिसार, श्वयस में दुगंध, --ये सब , लक्षण . पित्तज्वर में पाये जाते हैं ॥ ५५-५६ ॥
कफज्वर लक्षण ! ..... निद्रालुतारुचिरतीवशिरागुरुत्वं ! मंदोपसचिवको .
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