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(३१५८)
कल्याणकारके
खजूरादि लेप खजूरसर्जरसदाडिमनालिकेर । "हिंतालतालतरुमस्तकमेव पिष्टम् । रंभारसेन घृतमाहिषदुग्धमिश्र
मालपयेन्मधुकचंदनशारिवाभिः ॥२७॥ भावार्थ:--रक्तपित्तोशमन केलिये, खजर, राल, अनार, नारियल महाताल व ताल ( 3 ) इन वृक्षों के मस्तकोंको ( अग्रभागको) कलंके रस मे पीसकर, उसमें घी, भेंसः' : की दही मिलाकर अथवा मुलेठी, चंदन, अनंतनूल इनको उपरोक्त चीजोंसे पीसकर लेप करना चाहिये ॥ २७ ॥
लेप व स्नान क्षीरद्रुमांकुरशिफान्पयसासुपिष्टा-। नालेपयेद्रधिरपित्तकृतविकारान् ।। जंबकदंवतरुनिंवकषायधीतान् ।
क्षीरेण चंदनसुगंधिहिमांबुना वा ॥ २८ ॥ भावार्थ:-रक्तपित्ता रोगीको क्षीरीवृक्षोंके कोपल व जड को दूध में पीसकर लेपन करें । तथा जंबूवृक्ष, कदंब निववृक्षकी छाल के कषायसे अथवा दूधसे वा चंदनसे सुगंधित ठण्डे जलसे स्नान कराना चाहिये अथवा लालचन्दन, नागरमोथा खश इन के कषायसे स्नान कराना चाहिये ॥ २८ ॥
.. रक्तपित्त असाध्य लक्षण सश्वासकासबलनाशमद ज्वरात । मछाभिमूतमविपाकविझहयुक्तम् ।। तं वर्जयद्भिपगमुक्परिततदेहम् । ..
हिंकान्वित कुपितलोहितातिगंधिम् ॥ २९ ॥ भावार्थ:-----रक्तपित्ती रोगी सास माससे युक्त हो, अहारत हो, मद, घर, आग्निः मांद्य और विदाह. अदिसे पीडित हो, हिचकीसे युक्त हो, कुपितरक्त के सदृश दुर्गध से पीडित हो, ऐसे रोगीको असाध्य समझकर छोडना चाहिये ॥ २९॥
कप के स्थान में कुचित होवे ता और अच्छा मालूम होता है।
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