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________________ पित्तरोगाधिकारः । रक्तपित्तका असाध्यलक्षण । नीलाति कृष्णमतिपित्तमतिप्रदग्य- । मुष्णं सकोथबहुमांसमतिमलापम् ॥ मूर्छान्वितं रुधिरपित्तमहेंद्रचाप- 1 गोपोपमं मनुजमाशु निर्हति वांतम् ॥ १७ ॥ भावार्थ:- :- वमन किया हुआ रक्तका वर्ण नीला हो, अधिक काला हो, अत्यधिक पित्तसहित हो, जला जैसा हो, अति गरम हो, सउगया जैसा हो, मांस रसके समान एवं इंद्रधनुषके समान वर्णवाला हो, इंद्रगोपनामक लाल कीडा जैसा हो, साथमें: रक्त पित्ती रोगी बहुत प्रलाप कर रहा हो, मूछोंसे युक्त हो, तो ऐसे रक्तपित्तको असाध्य जानना चाहिए । ऐसे रोगी जल्दी नाश होते हैं ॥ १७ ॥ साध्यासाध्य विचार । साध्यं तदूर्ध्वमथ याप्यमधः प्रवृत्तं । वर्ज्य भिषग्भिरधिकं युगपद्विसृष्टम् ॥ तत्रातिपाण्डुमतिशीतकराननांधि । निश्वासमाशु विनिर्हति सरक्तनेत्रम् ॥ १८ ॥ भावाथः -- ऊर्ध्वगत रक्त पित्त साध्य, अधोगत याय एवं ऊर्ध्व और अध युगपत् अधिक निकला हुआ असाध्य [ अनुपक्रम ] समझना चाहिए । रक्त पित्त के रोगीका शरीर हाथ पैर बिलकुल पीला होगया हो, मुख श्वास ठंडा पड गया हो, आंखे लाल होगई हों ऐसे रोगी को यमपुरका टिकिट मिलगया समझना चाहिए ॥ १८ ॥ Jain Education International ( १५६) द्राक्षा कषाय | द्राक्षाकषायममलं तु कणासमेतम् । प्रातः पिवेदुडघृतं पयसा विमिश्रम् ॥ सत्यः सुखी भवति लोहितपित्तयुक्तः । शीताभिरद्भिस्थवा पयसाभिषिक्तम् ॥ १९ ॥ भावार्थ:-- निर्मल द्राक्षाकपायको प्रातःकाल गुंड, घी, दूधके साथ मिलाकर पीनेसे रक्त पिसी सुखी होजाता है । अथवा ठण्डे पानी या दूर्व से स्नान कराना भी उसके लिए हितकर होगा ॥ १९ ॥ कासादिस्वरस | कासेभुखंड पृष्टजातिरसं विगृता । स्नात्वावसहित शिशिरोदकन ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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