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________________ पित्तरोगाधिकारः। (१५३) भावार्थ:----कास, ईख, चंदन, अनंतमूल इनके ठण्डे पानी में शक्कर मिलाकर फिर उस में कंकोल, जायफल, नागकेसर व लवंगके कल्क मिलाकर पीनेसे पित्तोद्रेकसे उत्पन्न संताप दूर होता है ॥ १० ॥ पित्तोपशामक वमन । शीतांबुना मदनमागधिकोग्रगंधा-। मिश्रेण चंदनयतन गुडाप्लुतेन ॥ तं छर्दयेदधिकपित्तवितप्तदेहं । शीतां पिबेत्तदनुदुग्धघृतां यवागूम् ॥ ११ ॥ भावार्थ:---ठण्डे पानी में मेनफल, पीपल, वच व चंदन को मिलाकर उसमें गुड भिगोवें । यदि अधिक पित्तप्रकोप हुआ तो उक्त पानी से उसे वमन करावें एवं पीछे ठण्डा घृत व दूध मिली हुई यवागू उसे पीनेको देवें ।। ११ ॥ ___व्योषादि चूर्ण। व्योपत्रिजातकघनामलकैस्समांशैः । निःमूत्रचूर्णमिह शर्करया विमिश्रम् ॥ तद्भक्षयेदधिकपित्तकृतामयातः । शीतांबुपानमनुपानमुशंति संतः ॥ १२ ॥ भावार्थ:--त्रिकटु, त्रिजातक [ दालचीनि, इलायची, पत्रज ] नागरमोथा, आमलक इनको समभाग लेकर कपडाछान चूर्ण करके शकरके साथ मिलाकर, ठण्डे पानीके अनुपान के साथ, खावे तो अत्यधिक पित्तोद्रेक भी शांत हो जाता है ॥ १२॥ एलादिचूर्ण संशुद्ध देहमिति संशमनप्रयोगैः । शेष जयेत्तदनुपित्तमिहोच्यमानैः ।। एलालवंगधनचंदननागपुष्प- । लाजाकणामलकचूर्णगडांबुपानः ॥ १३ ॥ भावार्थ:-मन व विरेचनसे संशुद्ध देहवालों के वक्ष्यमाण उपशमन प्रयोगों के द्वारा पित्तको शांत करना चाहिये । इलायची, लवंग, नागरमोथा, चंदन, नागकेसर, लाजा, (खील ) कणा, ( जीरा ) आंवला इनके चूर्णो को गुटके पानीके साथ मिलाकर पीनेसे पित्तोशमन होता है ॥ १३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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