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________________ · ( १५२ ) कल्याणकारके .. भावार्थ:- पैत्तिक रोगीको चारों तरफसे, नवीन यौवन व सुंदर आभूषणों से भूषित अत्यंत मधुर वचन बोलनेवाली स्त्रियां, अपनी २ सुमनोहर कठिन कुचों से, मत्स्य जैसे सुंदर आंखों से उत्पन्न कटाक्ष से, प्रेमयुक्त अतिमनोहर व मधुराक्षरसंयुक्त मीठे सम्भाषणोंसे, चन्द्रोपम मुखकमलसे, नीलोपलसदृश अक्षियोंसे, अतिशीतल हाथों के स्पर्शसे शीघ्र ही संतोषित करें तो पित्तोपशमन होता है ॥ ६ ॥ ७ ॥ पितोपशमकारक अन्य उपाय । स्रक्चंदनैर्विमलसूक्ष्मजलार्द्रवस्त्रैः ॥ कल्हारहारकदलीदलपद्मपत्रैः । शीतांबुशीकरकणमकरावकीर्णेः । निर्वापयेदरुणपल्लवतालंवृतैः ॥ ८ ॥ भावार्थ: : --- पुष्प मालावारण, चन्दनलेपन, पानी में भिगोया हुआ पतला यत्र धारण, कमलनाडी का हार पहिनना, केले की पत्ती व कमलपत्ती इनको ऊपर नीचे बिछाकर सोना, ठण्डे पानी के सूक्ष्म कणोंसे प्रक्षेपण, कोंपल व पंखे का शीतल हवा, इत्यादि ठण्डे पदार्थों के प्रयोगसे पित्तोपशमन करना चाहिये | ॥ ८ ॥ पित्तशामक द्राक्षादि योग । द्राक्षासयष्टिमधुकेक्षुजलां बुदानां । तोये लवंगकमलोत्पलकेसराणां कल्कं गुडांबुपरिमिश्रितमाशु तस्मि न्नालोड्य गालितमिदं स पिवेत्सुखार्थी ॥ ९ ॥ I भावार्थ:- द्राक्षा, मुलैठी, ईख, नेत्रवाला,' नागरमोथा इनके जल ( काथ, नीलकमल, पद्मकेशर इन को अच्छी तरह अच्छी तरह घोल लेवें । उस को छानकर सुखार्थी मनुष्य पीवें ॥ ९ ॥ शीतकषाय आदि) में, लवंग, कमल, पीस कर, इसमें गुडके पानी मिलाकर पित्तामयप्रशमन करने के लिये Jain Education International कासादि क्वाथ | कासेक्षुखंडमलयोद्भवशीरवाणां । तोर्य सुशीतलतरं वरशर्कराढ्यं ॥ कर्कोलजातिफलनागलवंगकल्क- । मिश्रं पिवेदधिकतापविनाशनार्थम् ॥ १० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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