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________________ (११०) कल्याणकारके भावार्थ:--यह मकान, सदा झाड़ लगाना, दीप जलाना, धूपसे सुगंवितकरना, फूलमालाओं को टागना इन से सुशोभित, मनोहर, और रक्षकों द्वारा रक्षित होना चाहिये । एवं वह योग्य स्त्री पुरुषों के प्रवेश से परीक्षित होना चाहिये ॥२०॥ निवातनिश्च्छि मतदोष-- मासनसोपस्कर भेषजाड्यम् ॥ आपूर्णवणाञ्चलकरीभि ग्लंकृतं मंगलवास्तु शस्तम् ॥ २१ ॥ भावार्थ:---- यह मकान अधिक हवादार छिद्र व दोषयुक्त न हो । अनेक उपकरण और श्रेष्ठ औषधियां जिसके पास हो, सुंदर २ चित्र व गुलछरोंसे शोभित हो ऐसा मंगल मकान प्रशस्त है ॥ २१ ॥ शय्याविधान । तस्मिन्महावेश्मनि नानुवंशं । विशीर्णविस्तीर्णमाभिराम ॥ सखटमाढ्यं शयनं विधेयम् । निरंतरातानवितानयुक्तम् ॥ २२ ॥ , भावार्थ:-उपर्युक्त प्रकार के महान् मकान में, रोगी को सोने के लिये एक अच्छे खाट ( पलंग ) पर, ऐसा विस्तर बिछाना चाहिये, जो, नया, विशाल और मनोहर हो, जिसके चारों ओर पर्दा, ऊपर चन्दोवा ( मच्छरदानी ) हो । ॥ २२॥ शयनविधि। स्निग्धैः स्थिधुभिरप्रमत्त-। रनाकुलेस्साधु विधाय रक्षाम् ॥ पारदक्षिणाशानिहितोत्तमांग-- । · इशयीत तस्मिन् शयने सुखार्थी ॥ २३ ॥ भावार्थ:-मित्रजन, स्थिर चित्तवाले, बंधु, सतर्क और शांत मनुष्योंके द्वारा रोगीकी रक्षा होनी चाहिये । सुखकी इच्छासे वह रोगी उस पलंगपर पूर्व या दक्षिण दिशाके तरफ मस्तक करके शयन करें ॥ २३ ॥ रोगीकी दिनचर्या प्रातः समुत्थाय यथोचितात्मा । नित्यौषधाहारविचारधर्मः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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