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________________ अन्नपानाविधिः। . आस्तिक्यबुद्धिस्सतताप्रमत्त-। स्सर्वात्मना वैद्यवचोऽनुवर्ती ॥ २४ ॥ भावार्थ:-----प्रातःकाल उठकर प्रतिनित्य अपने योग्य औषधि और आहारके विषय में वह विचार करें कि किस समय कोनसी औषधि लेनी है, क्या खाना चाहिये. भादि । आस्तिक्य बुद्धि रग्वें और सदा सावधान रहें । एवं सर्व प्रकार से वैद्यके अभिप्रायानुसार ही अपना आहारविहार आदि कार्य करें ।। २४ ॥ यमैश्च सर्वनियमरुपेती । । मृत्युंजयाभ्यासरतो जितात्मा ॥ जिनेंद्रबिंबार्चनयात्मरक्षा । दीक्षामिमां सावधिका गृहीत्वा ॥ २५॥ भावार्थ:-प्रतिनित्य यम या नियम नोंसे युक्त रहें । मृत्युंजयादि-मंत्रोंको जपते रहें । इंद्रियोंको वश में कर रखें । जिनेंद्र बिंबकी पूजासे मैं अपनी आत्मरक्षा करलूंगा इस प्रकारकी नियम दीक्षा को लेवें ॥ २५ ।। दिवा निशं धर्मकथास्स धन । समाहितो दानदयापरश्च ॥ शांति पयोमृष्टरसानपान । स्सतर्पयन्साधुमुनींद्रवंदम् ॥ २६ ॥ भावार्थ:-रात्रिंदिन धर्मकथावों को सुनते हुए सदाकाल दया और दानमें रत रहें । सदा सुंदर मिष्ट आहारोंसे शांत साधुगणोंको तृप्त करते रहें ॥ २६ ॥ सदातुरस्सर्वहितानुरागी। पापक्रियाया विनिवृत्तवृत्तिः ॥ वृषान्विमुंचन्नथदाहिनश्च [ ? ] विमोचयन्बंधनजस्थान ॥ २७ ॥ ... भावार्थ : ----सदा गेगी सबका हितैषी बने और मवसे प्रेम । सर्व पाप क्रियाओं को बिलकुल छोड देवें । वंदन में रहे । अन्य प्राणियोंको दयासे छुडावें ॥२७॥ शाम्योपशांति च नरश्चभक्त्या । निनादभन्या जिनचंद्रभक्त्या ।। एवंविथो दृरन पद पापा---- द्विमुच्यते किं खल रांगजालेः ॥ २८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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