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कल्याणकारके
अधिक पानी पीने आदि का अभ्यास करते हुए फिर उसी घर में प्रवेश करें। यह अभ्यास प्रतिनित्य करें। इस रसायनको सेवन करनेवाला व्यक्ति देवोंके समान अद्वितीय बन जाता है, चन्द्रसूर्य के समान प्रकाशवान शरीरवाला होता है । मेघके समान गंभीर शब्दवाला बन जाता है । हजारों बिजलियों के समान चमकनेवाले आभूषणों से युक्त शरीरवाला बन जाता है । स्वर्गीय पुष्पमाला, चंदन, निर्मलबस्त्र इत्यादि से अन्तर्मुहूर्त में शोभित होता है । पाताल में, आकाश में, दिशा विदिशा में, पर्वत में, समुद्रप्रान्त में, जहांपर भी इच्छा है वहींपर बिगर रुकावट गमन करसकता है। म्पर्शकरनेमें उसका शरीर ऐसा मालुम होता है कि दिव्यअमृत ही हो एवं बह बडे २ रोगोंको जीतनेके लिये समर्थ रहता है। इस संसारमें निर्मल चारित्र को प्राप्तकर सहस्र पूर्वकोटी आयुष्यको प्राप्त करता है ॥ ५७ ॥ ५८ ॥ ५९ ॥ ६० ॥ ६१ ॥ ६२ ॥ ६३ ।।
विविध रसायन । एवं चंद्रामृतादप्यधिकतरबलान्यत्रसत्यौषधानि । । प्रख्यातानींद्ररूपाण्यतिबहुविलसन्मण्डलैर्मण्डितानि ॥ नानारखाकुलानि प्रबलतरलतान्येकपत्र द्विपचा-।। *ण्येतान्येतद्विधानादनुभवनमिह प्रोक्तमासीत्तथैव ॥ ६४ ॥ . भावार्थ:-इस प्रकार इस चंद्रामृतसे भी अधिक शक्तियुक्त बहुतसे औषध मौजूद है। उनके सेवनसे साक्षात् देवेंद्रके समान रूप बनजाता है। उनके पत्तोमें बहुतसी चमकीली नानाप्रकारकी रेखायें रहती हैं। कोई एकपत्र द्विपत्रवाली लतायें रहती हैं । उनको उक्त विधीके अनुसार सेवन करनेसे अनेक प्रकारके फल मिलते हैं ॥ ६४ ॥
चन्द्रामृतादिरसायनके अयोग्यमनुष्य। पापी भीरुः प्रमादी जनधनरहितो भेषजस्यावमानी। कल्याणोत्साहहीनो व्यसनपरिकरो नात्मवान् रोषिणश्च ॥ तेचान्ये वर्जनीया जिनपतिमतबाह्याश्च ये दुर्मनुष्याः। लक्ष्मीसर्वस्वसौख्यास्पदगुणयुतसद्भपश्चंद्रमुख्यः ॥ ६५ ।
भावार्थ:--ऐश्वर्य, व सुखको उत्पन्न करने वाले, उपर्युक्त चंद्रामृतादि दिव्यऔषधोंको. पापी, भी आलसी, परिवारजनरहित, निर्धन, औषधिके अपममान. करनेवाले, व्यसनोमें मग्न, इन्द्रियों के वशवर्ति ( असंयमी ) क्रोधी, जिनधर्मद्वेषी, और दुर्जन आदिको नहीं देना चाहिये !..६५ ।।
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