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कल्याणकारके
वृष्यामलकादि चूर्ण |
छागक्षीरेणामलक्याः फलं वा । पकं शुष्कं चूर्णितं शर्करादयम् ॥ मूलानां वायुचटागोक्षुराणां । वीर्ये कुर्याच्छागवीर्येण तुल्यम् ॥ ३७ ॥
भावार्थ:--- बकरी के दूध के साथ आंबलेको पकाकर, सूखनेके बाद चूर्णकर शक्क रके सम्मिश्रणसे खानेसे या चिंचोटकतृण, (उटंगण ) और गोखुर की जड को आंवले के रसायन से, खानेपर, बकरेके वीर्यके समान ही वीर्य बनता है ॥ ३७॥
छागदुग्ध ।
माषकाथोन्मिश्रितं छागदुग्धं । पीत्वा रात्रौ तद्वृताक्तं गुडादयम् ।। यामे यामे सप्तसप्तैकवारं ।
स्त्रीव्यापारे याति जातप्रमादः || ३८ ॥
भावार्थ:- बकरी के दूध में उडद का काथ [ काढा ] घी, गुड मिलाकर रात्रिमें पीयें, तो प्रति प्रहरमें उल्लासपूर्वक सात सात वार स्त्रियोंका सेवन कर सकता है ॥ ३८ ॥
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वृष्य, भूकूष्माण्डादि चूर्ण । भूकुष्माण्डं चेक्षुराणां च बीजं । गुप्तावीजं वा मुसल्याच मूलम् ॥ चूर्णीभूतं छागदुग्धेन पातुं । तद्वद्देयं रात्रिसंभोगकाले ॥ ३९ ॥
भावार्थ:- जमीन कद्दू तालमखाना विदारिकंद बीज, कौंच के बीज मुसली ( तालमूली) की जड इनको चूर्णकर, बकरके दूध के साथ रात्री में संभोग के समय पीनेके लिये देना चाहिये ॥ ३९ ॥
नपुंसकत्वके कारण व चिकित्सा
मर्मच्छेदाच्छुक्रधातुक्षयाद्वा । मेदूव्याधेजनितः लैव्यमुक्तम् ॥
साध्य कैव्यं यत्क्षयाज्जातमेषु । प्रोक्ता योगास्तेऽत्र योज्या विधिज्ञैः ॥ ४० ॥
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