SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रसायनविधिः । भावार्थ:-धान, उडद, तिल इन तीनोंके आटा बनाकर उनके सम्मिश्रण से बनाया गया पुआ शक्कर दूध घीके साथ खावे तो पौष्टिक है । एवं कामभोगमें कामिनी को तृति करनेके लिये कारण है ॥ ३३ ॥ वृष्य सक्तू। सक्तून्मिश्रान्क्षीरसंतानिकान्वा । माषाणां वा चूर्णयुक्त गुडाव्यम् । जग्ध्वा नित्यं सप्ततिं कामिनीनां । यायावद्धाप्यश्रमेणैव मर्त्यः ॥ ३४ ॥ भावार्थ:--सत्तको मलाई में मिश्रित करके सेवन करें अथवा गुडसे युक्त उडद के आटेका कोई पदार्थ बनाकर खावे तो वह बुड्डा भी हो तो प्रतिदिन सत्तर स्त्रियोंको भी विनाश्रमके सेवन कर सकता है ॥ ३४ ॥ वृष्य गोधूमचूर्ण। गोधूमानां चूर्णमिक्षार्विकारैः । पकं क्षीरेणातिशीतं मनोज्ञ ॥ आज्येनैतत्भक्षयित्वांगनानां । षष्ठिं गच्छेदेकवारं क्रमेण ॥ ३५ ॥ भावार्थ:-गेहूंका आटा शक्कर और दूधके साथ पकाकर अत्यंत ठण्डा करें। इस मनोज्ञ पाक को घीके साथ खावें तो वह मनुष्य एकदफे क्रमसे साठ स्त्रियोंको भोग सकता है ॥ ३५ ॥ वृष्य रक्ताश्वस्थादियोग। रक्ताश्वत्थत्वग्विपकं पयो वा । यष्टीचूर्णोन्मिश्रितं शर्करादयं ॥ पीत्वा सद्यस्सप्तवारान्जेद्वा ॥ निर्वीर्योपि प्रत्यहं कामतप्तः ॥ ३६ ॥ भावार्थः-लाल अश्वत्थकी छालको दूधमें पकाकर अथवा मुलहटीका चूर्ण और शक्करसे मिश्रितदूध को यदि मनुम्य पीवे तो चाहे वह वीर्य रहित क्यों न हो तथापि प्रतिनित्य कामतप्त होकर सातवार स्त्रीसेवन करसकता है ।। ३६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy