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________________ (९२) कल्याणकारके ... भावार्थ:-चित्तमें आल्हाद उत्पन्न करनेवाले एवं मनमें हर्ष और प्रसन्नताको बढानेवाले लतागृह जिनमें बहुतसे सुंदर पुष्प खिले हुए दिख रहे हों, विहार करने योग्य हैं । उनसे इंद्रियोंको सुख मिलता है एवं प्रायः ये कामुकोंकेलिये कामकी इच्छा उत्पन्न करने के लिये कारण हैं ॥३०॥ कामोद्दीपन करनेवाली स्त्री। या लावण्योपेतगात्रानुकूला। भूषावेषोद्भासि सद्यौवना च ।। मध्ये क्षामोत्तुंगीनस्तनीया। सुश्रोणी सा वृष्यहेतुर्नराणाम् !॥ ३१ ॥ भावार्थ:- जो सुंदरी शरीरके लिये शोभनेवाले वस्त्राभूषणोंको धारण करती हो, युवती हो, मध्यस्थान जिसका कुश हो और उन्नत एवं मोटे स्तनोंसे युक्त हो, नितंबस्थान जिसका सुंदर हो वह स्त्री, पुरुषोंको कामोद्दीपन करनेवाली होती है ॥३१॥ वृष्यामलक योग। धात्रीचूर्ण तद्रसेनैव सिक्तं । शुष्कं सम्यक्षीरसंभावितं च ॥ खण्डेनाक्तं सेव्यमानो मनुष्यो । वीर्याधिक्यं प्राप्नुयात्क्षीरपानात् ॥ ३२ ॥ ... भावार्यः----. आबले के चूर्ण में, उसीके रस डालकर सुखावें, इसी को भावना कहते हैं। तत् पश्चात् अच्छीतरह दूध की भावना देवें । इस प्रकार भावित चूर्ण के बराबर खांड मिलाकर खायें और ऊपर से दूध पीवे तो अत्यंत वीर्य की वृद्धि होती है। नोट:- जहाँ भावना का प्रमाण नहीं लिखा हो, वहां सम भावना देनी चाहिये ऐसी परिभाषा है । इसलिये यहां भी भावनाप्रमाण नहीं लिखने के कारण, आबले के रस, और दूध के साथ २ भावना देनी चाहिये ॥३२॥ वृष्य, शाल्यादियोग। कृत्वा चूर्ण शालिमाषांस्तिलांश्च । क्षीराज्याभ्यां शर्करामिश्रिताभ्यां ॥ पक्कापूपान्भक्षयेदक्षयं तत् । वृष्यं वांछन् कामिनीतृप्तिहेतुं ॥ ३३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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