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रसायनविधिः ।
शैलाद्यारोहण निषेध शैलान्वृक्षान्दुष्टवाजीद्विपेंद्रा- । नारोहद्वा ग्राहनकाकुलोमिः ।। नीबस्रोता वाहिनी वारिधीन्वा ॥
गाहेत्तान्यत्पल्वलस्थं न तोयं ॥ २७ ॥ भावार्थ:----सुखच्छु मनुष्य, पहाट , वृक्ष, दुष्टघोडा व हाथी इत्यादिपर नहीं चढ़े, जिसमें मगर व अधिक उर्मी हो, तीव्र स्रोत बहरही हो ऐसी नदी व समुद्र में प्रवेश न करें, तथा पल्वल ( जमीनमें बडे २ गड्डे रहते है इनमें बरसात के समय पानी भरजाता है वह कई दिनोंतक रहता है उनको पल्बल कहते हैं) के जलमें भी स्नानादिक न करें ॥२७॥
पापादिकार्यों के निषेध ॥ यद्यत्पापाथै यच्च पेशून्यहेतु- । र्यद्यल्लोकानामप्रियं चाप्रशस्तं ॥ यद्यत्सर्वेषामेव बाधानिमित्तम् ॥
तत्तत्सर्व वर्जनीयं मनुष्यैः ॥ २८॥ भावार्थ:---जो जो कार्य पापोपार्जनके लिये कारण हो, जो लोकापवादके लिये कारण हों, लोगोंके लिये अप्रिय एवं अमंगल हों और जो सबके लिये बाधा उत्पन्न करने वाले हों, ऐसे कार्यांको बुद्धिमान् मनुष्य कभी न करें ॥२८॥
हिंसादिके त्याग। हिंसासत्यं स्तेयमोहादि सर्वे । त्यक्त्वा धीमांश्चारुचारित्रयुक्तः ॥ साधूसंपूज्य प्राज्यवीर्याधियुक्ता- ॥
नारोग्यार्थी योजयेद्योगराजान् ॥ २९॥ ... भावार्थ:--स्वास्थ्यकी इच्छा रखनेवाला मनुष्य हिंसा, झूठ, चोरी, परिप्रह, कुशील इत्यादि पापोंको छोडकर सदाचरणमें तत्पर होवें, सज्जन व संयमियोंकी सेवा करके अत्यंत शक्तिवर्द्धक योगराजोंका प्रयोग करें ॥२९॥
वृष्याधिकारः। कामोत्पत्ति के साधन । चित्ताल्हादः कांतिमन्मानसानि । प्रोद्यत्पुष्पोद्भासि वल्लीगृहाणि ॥ चक्षुस्पर्शश्रोत्रनासासुखानि ।। प्रायेणैतत्कामिनां कामहेतु ॥ ३० ॥
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