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कल्याणकारके
एवं ठण्डी हवा लेनेके साथ शीतगुण युक्त अन्न पानकर शांतिसे निद्रा लेनी चाहिये, यह हितकर है ॥२३॥
निद्राकी आवश्यकता । रात्रौ निद्रालुः स्यान्मनुष्यः सुखार्थी । निद्रा सर्वेषां नित्यमारोग्यहेतुः ॥ निद्राभंगे स्यात्सर्वदोषप्रकोपो ।
वा निद्रा स्यात्सर्वदेवाप्यमोघम् ॥ २४ ॥ भावार्थ:---रात्रिमें जो मनुष्य यथेष्ट निद्रा लेता है वह सुखी बन जाता है । अथवा सुखकी इच्छा रखनेवाला रात्रिमें निद्रा अवश्य लेवें । निद्रा सभी प्राणियोंको आरोग्यका कारण है। निद्राभंग होनेसे वातादि दोषोंका उद्रेक होता है। लेकिन रात दिन निद्रा नहीं लेनी चाहिये ॥२४॥
दिनमें निद्रा लेनेका अवस्थाविशेष । दृराध्वन्यः श्रांतदेहः पिपासी । वातक्षीणो मद्यमत्तोऽतिसारी ॥ रात्रौ ये वा जागरूकास्तदर्धा
निद्रा सेव्या तैर्मनुष्यैर्दिवापि ॥ २५ ॥ भावार्थ:--दूरसे जो चलकर आया हो, थका हुआ हो , प्यासा हो, वातरोगसे पीडित हो कर क्षीण होगया हो , अतिसार रोगसे पीडित हो, मद्य पीकर मत्त होगया हो एवं सत्रिमें जो जगा हो वह मनुष्य जागरणसे आधी नींद दिनमें लेसकता है ॥२५॥
सर्वर्तुसाधारणचर्याधिकारः।
___ हितमितभाषण। एवं सहत्तैस्सज्जनं दुर्जनं वा । जन्माचारांतर्गतानिष्टवाक्यः ॥ रागद्वेषात्यंतमोहनिमित्तः ।
नैव ब्रूयात्स्वस्य संपत्सुखार्थी ॥ २६ ॥ भावार्थ:--जो मनुष्य संसारमें सम्पत्ति व सुख चाहता है उसे चाहिये कि वह सजन २ दुर्जन के प्रति, जन्म ( पैदाइश) सम्बंधी व आचार सम्बंधी अनिष्ट वचनों के प्रयोग न करें जो कि गग, द्वेष, व मोह की उत्पति के लिये कारण होते हों ॥२६॥
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