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________________ रसायनविधिः। ( ८९) भावार्थ:--जिसका शरीर बिलकुल निरोग है, जो जवान है व वृष्य (कामवर्द्धक, शुक्रजनक) पदार्थीको सेवन करता है उसीको हमेशाह मैथुन सेवन करनेके लिये कहा है । अर्थात् वही सदा सेवन कर सकता है । वह वृष्य पदार्थ कौनसे हैं यह आगे योगराजधिकारमें लक्षण सहित प्रतिपादन करेंगे ऐसी आचार्य प्रतिज्ञा करते हैं ॥ २० ॥ . ब्रह्मचर्य के गुण। वर्णाधिक्यं निर्वलीकं शरीरं । सत्वोपेतं दीर्घमायुस्सुदृष्टिम् । कांतिं गात्राणां स्थैर्यमत्यंतवीर्यम् । मर्त्यः प्राप्नोति स्त्रीषु नित्यं जितात्मा ।। २१॥ भावार्थ:----जो स्त्रियों में नित्य विरक्त रहता है उस के शरीर का वर्ण बढता है, शरीर वली ( चमडेका सिकुडना ) रहित होता है, मनोबलसे युक्त होता है, दीर्घायु होता है, आंख अच्छी रहती है अर्थात् दृष्टि मन्द नहीं होती है। शरीर में कांति व मजबूती आजाती है, वह अत्यंत शक्तिशाली होता है ॥२१॥ मैथुन के लिये अयोग्य स्त्री व काल । दुष्टां दुर्जातिं दुर्भगां दुस्स्वरूपामल्पछिद्रांगीमातुरामातवीं च संध्यास्वस्पृश्यां पर्वसु प्राप्ययोग्यां। वृद्धान्नोपेयाद्राजपत्नी मनुष्यः ॥ २२ ॥ भावार्थ:- दुष्टास्त्री, नीच जातीवाली, दूषितयोनिवाली, कुरूपी, अल्प छिद्र (योनिस्थानका ) वाली, रोग से पीडित, रजस्वला, अस्पृश्या, वृद्धा ऐसी स्त्री तथा राजपत्नी के साथ कभी भी सम्भोग न करें। जो सम्भोग करने के लिये योग्य हो उसके साथ भी, संध्याकाल व अष्टमी चतुर्दशी आदि पर्वदिनों में सम्भोग नहीं करना चाहिये ॥२२॥ मैथुनानंतर विधेय विधि । स्वादुस्निग्धं मृष्टमिष्टं मनोज्ञं । क्षीरोपेतं भक्ष्यमिक्षार्विकार । शीतो वातश्शीतलं चान्नपानं । निद्रा संव्या ग्राम्यधर्मावसाने ॥ २३ ॥ भावार्थ:-स्वादिष्ट, चिकना, स्वच्छ, स्वेच्छाके अनुकूल, मनोज्ञ, तथा क्षीरयुक्त ऐसे भक्ष्य और ईख के विकार शक्कर आदि को मैथुन सेवन के बाद खाना चाहिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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