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कल्याणकारके
भावार्थ:--हमेशा जूता पहिनकर चलना चाहिये जिससे आरोग्य प्राप्त होता है व शरीर मृदु होजाता है । पैर ( पादतल ) में तेल मालिश करने से पादका जलन शांत होता है । सुखपूर्वक नींद आती है। आंख निर्मल हो जाता हैं ॥ १७ ॥
रात्रिचर्याधिकारः।
मैथुनसेवनकाल ! शीते काले नित्यमेकैकवारं । यायात्स्वस्थो ग्राम्यधापयोगम् ॥ ज्ञात्वा शक्ति चोष्णकाले कदाचित् ।
पक्षादोत्सप्तष पंचरात्रात् ॥१८॥ भावार्थ:-स्वस्थ मनुष्य ठण्डके मौसम में प्रतिनित्य एक दफे मैथुन सेवन कर सकता है । उष्ण काल में अपनी शक्ति का ख्याल रखकर पांच, छह, सात व आठ दिनमें एक दफे मैथुन सेवन करना चाहिये ॥१८॥
मैथुन के लिये अयोग्य व्यक्ति । क्षुत्तष्णार्तो सत्रविदशुक्रवेगी। दूराध्वन्यो य क्षतोत्पीडितांगः ॥ रेतःक्षीणो दुर्बलश्च ज्वरातः ।
प्रत्यूषे संवर्जयेत्तं व्यवायम् ॥ १९ ॥ भावार्थ:-- क्षुधा तृषासे जो पीडित हो, मल मूत्र व शुक्र का वेग उपस्थित ( बाहेर निकलनेके लिये तैयार हो) हो, दूरसे जो चलकर आनेसे थक गये हों, क्षयसे जो पीडित हो जिनका शुक्र क्षीण हो गया हो, जो शक्तिहीन हो, वर पाडित हो उनको मैथुन सेवन वर्ण्य है । एवंच प्रातःकालके समय मैथुन सेवन (किसीको भी) नहीं करना चाहिये ॥१९॥
सतत मैथुनके योग्य व्यक्ति। कल्याणांगो यो युवा ध्यसेवी । तस्यैवोक्तस्सर्वकाले व्यवायः॥ वृष्यान्योगायोगराजाधिकारे । वक्ष्याम्यषणान् लक्षणैरुत्तरत्र ।।२०।
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