________________
अन्नपानविधिः।
(९५)
भावार्थ:--मर्मच्छेद होनेसे, वीर्यका अत्याधिक नाश होनेसे, और कोई शिश्न रोग आदि कारणों से नपुंसकता आती है । इन में से, शुक्रक्षय से होनेवाला जो नपुंसकत्व है वह साध्य है । इस नपुंसकत्व के निवारणार्थ पूर्वकथित वृष्ययोगोंको विधिज्ञ वैध प्रयोग करें ॥ ४० ॥
रसायनाधिकार ।' संक्षपसे वृष्य पदार्थोंके कथन । यद्यच्छीतं स्निग्धमाधुर्ययुक्तं । तत्तद्रव्यं वृष्यमाहुर्मुनींद्राः ॥ रोगान्सवान् हंतुमत्यंतवीयोन् ।
योगान्वक्षाम्यात्मसंरक्षणार्थ ॥ ४१ ॥ भावार्थ:-जो २ पदार्थ शीतगुण युक्त हैं, सिग्ध [चिकना] हैं, और माधुर्यगुण युक्त हैं वे सभी वृष्य, ( वीर्यवर्द्धक, कामोत्तेजक ) हैं ऐसा महर्षिगण कहते हैं । आचार्य कहते हैं कि आत्मसंरक्षणके लिए निरोग शरीरकी आवश्यकता है । इसलिए सभी रोंगोंको दूर करनेकोलिए अत्यन्त वीर्ययुक्त योगोंका अर्थात् रसायनोंका निरूपण आगे करेंगे ४३
त्रिफला रसायन । प्रातर्धात्री भक्षयेद्भुक्तकाले । पथ्यामकां नक्तमक्षं यथावत् ॥ कल्याणांगस्तीवचक्षुश्चिरायु
भूत्वाजीवेद्धर्मकामार्थयुक्तः ॥ ४२ ।। भावार्थ-- प्रातःकाल भोजनके समय में तीन आंवला रात्रीके समय एक हरड, दो बहेडाको चूर्ण करके घी शकर आदि योग्य अनुपानके साथ सेवन करें, तो शरीर के सभी रोग नाश होकर, शरीर सुंदर बनता है, आंखोंमें तेजी आती है । वह व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम, को पालन करते हुए चिरायु होकर, जीता है ॥ ४२ ॥
१ यद्यपि इस श्लोकमें आंवला, और बहेडे की संख्या निर्देश ठीक तौरसे नहीं की गई है। तथापि अन्य अनेक वैद्यक ग्रंथों में प्राय: इसी प्रकारका उल्लेख मिलता है कि जहांपर त्रिफलाका साधारण कथन हो वहां उपरोक्त प्रकारसे ग्रहण किया जाता है । इमी आधारसे ऊपर स्पष्टतया संख्या निदेश की गई है।
दूसरी बात यह है कि श्लोकम बहेडा सेवन करने का समय नहीं बतलाया है । हरडके साथ ही खावें तो मात्रा बढती है, आंवले की मात्रा कमती होती है । इस कारणसे हम यह समझते हैं कि एक हरड, दो बहेडा, तीन आंवला इस क्रमसे लेकर तीनोंको एक साथ चूर्ण करके योग्य मात्रामें शाम सुबह सेवन करना चाहिये । यही आचार्यका अभिप्राय होगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org